दर्द की कुछ सिसक बाकी है
यादों की कुछ पहर बाकी है
कहते तो है तुम्हें भुला दिए
कभी मिलेगें, ये सबर बाकी है-
कुछ हकीकत कुछ ख्वाब
कुछ उम्मीदों में इंतजार
हिस्सों में बटती जिंदगी
कुछ सोमवार कुछ इतवार-
राम तेरे स्वरूप को निहारूँ मैं
किस विध सुदबूद संभालूँ मैं
तेरी चरणों की दासी बन
भक्ति का बंधन बांधूँ मैं
राम तेरे स्वरूप ..........
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खैर पूछते हैं खुद से खुद का
ख्यालों में बस खुद का ख्याल
तबियत तो ठीक है
पर नाजुक दिल का हाल
उलझा रहे कई सवाल है
जवाब के लिए,इंतजार का है मलाल
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प्रेम की पवित्रता कहाँ समझे कोई
ना ही कोई राधा यहाँ ना ही कृष्ण कोई
प्रेम की शक्ति कहाँ समझे कोई
मीरा जैसी जोगन यहाँ है थोड़ी कोई
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उम्र का बढ़ता कदम
अनुभव के नए रंगों को समेटे
कभी आसान तो कभी मुश्किल पहेली को सुलझाते
उम्मीद की लाठी पकड़े
जिंदगी की सीढ़ी चढ़ता है-
कहीं तो कुछ खास एहसास है
इश्क ना सही पर कुछ तो बात है
महज़ ये आँखो की गुस्ताख़ी है?
या फिर होने वाला बेसुमार प्यार है
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श्रृंगार ना सौंदर्य को परिभाषित करें
रुप ना रस को परिभाषित करें
मन की पवित्रता दूसरा पवित्र मन जाने
तन ना आत्मा को परिभाषित करें
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चाँद सितारे समंदर पे शायरी पुरानी लगती है
आँखे तेरी जानी पहचानी लगती है
जो जूल्फे बिखरा दे तू
चुड़ैल की भी नानी लगती है
मेरी दोस्त कितना भी समझा लूँ तुझे
फिर भी तू पगलों की महारानी लगती है-