'नेह'......से
अर्पण किए गए
'पुष्प'
बहुत पवित्र होते हैं.......— % &
जिन्हें विलग किया गया
मूर्तियों से
जो बह न सके जलधारा में...
उन अर्पित सारे पुष्पों को
समो लिया
'नेह' की अनुपम धारा ने....
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कुछ मुरझाए,कुछ खिले हुए
कभी उन पुष्पों में जब गिले हुए
'नेह' से इक माला गूंथी तो,
सब अलग -अलग थे
फिर भी एक ही धागे में थे मिले हुए.....— % &
इन पुष्पों में समाहित
रंग-ओ-बू से
महक उठती है फिज़ा
कुदरत रज रज कर मुस्काती है
'नेह' के धागे से बंधकर
हृदयों को सुकून मिले
निष्प्राण में जिजीविषा आ जाती है......— % &
तुम 'नेह' सबके अंतस में रमो
सबके होंठों पर मुस्कुराती रहो
रब करे दुआएँ रंग लाएं
तुम दुआओं में असर बन समाती रहो.......
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