मी नेहमीच म्हणतो,
"तू म्हणशील तसं"..
तुझे मात्र ..सदैव म्हणणं..
हे असं रे कसं?..
©®स्नेहा-
इश्क़ ..
हर किसी को..
किसी एकसेही होता हैं..
पूरा हो जाए ..
तो अपने साथ ले जाता हैं..
अगर अधुरा रहे तो..
जर्रे जर्रे में ठहर जाता हैं..
©®स्नेहा..
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उसने कहा, बड़ा गुरूर हैं तुम में.. कम कर दो..
हाँ, हैं तो सही..मगर जचता किसी किसी पर हैं..
©®स्नेहा..-
तोड़ दे तुझे, वो इश्क़ नहीं होता..
रूह -ए-सकुन होता हैं इश्क़..
जो तुझसे कभी ज़ुदा नहीं होता..
©®स्नेहा..
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इक मुस्कुराहट की चाहत थी उसे..
और मैंने उसे खुशियों की सौगात दे दी..
हमने बस गले लगाने की हसरत रखी..
और उसने शरीफ़े औकात बता दी..
©®निशि
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रूख हवा का बदलते हुए..देखा होगा पत्तों ने
वो शाख़ से जुदाई का आलम बना बैठें..
©®निशि..
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शायद वो शाख़ही बेवफ़ा निकली होगी..
यूँही कोई परिंदा अपना घोंसला उजाड़ता नहीं..
©®निशि..
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ती प्रत्येकासमोर..
स्वतःच्या दुःखाचा पाढा वाचत होती..
पण.. तो तर तिच्या सुटकेसाठी..
केलेला 'शंखनाद' होता..
©®स्नेहा..-
जरूरी नहीं कि,
जिंदा दिखनेवाले लोग जिंदा होते हैं..
न जाने कितने जीतेजी ही मर जाते हैं..
©®स्नेहा..-
वो बख़ूबी समझ लेती हैं, बेजुबाँ जानवरो की बोली..
बोलनेवाले मगर उसे कहते है, तुम कुछ नहीं समझती..
©®स्नेहा..-