स्थिरता,गति,धैर्य,भय,प्रेम,द्वेष,जीवन और मृत्यु
मेरे लिए अभी ये सब के अर्थ "एक" ही है...!
"एक" को कितना तो चाहा जा सकता है ..!
"एक" में कितना तो अनंत रहा जा सकता है।
कितनी देर तक तका जा सकता है वो "एक"
कितनी तरह से लिखा जा सकता है वो "एक"
तुम्हें देखती, सुनती, पढ़ती हूं तो लगता है
"एक" का कितना महत्व है...!-
मैंने हर बार तुझे अपने आप से अलग समझा..!
Dear comrade,
क्या हुआ थके थके से लग रहे हो, भागने से थक गए,
चलने से या फिर थक गए कुछ न करने से।
तुम तो यह भी भूल गए कि दिन के चार पहर होते थे,
अभी तो दो ही पहर तुम मानते हो दिन और रात।
आखरी बार कब दोपहर और शाम देखी थी,
आखरी बार कब तुम बेवजह खिलखिलाए थे, गुनगुनाए थे,
तारों संग टिमटिमाये थे। कभी फुर्सत से देखा,सोचा या समझा,
सच्चे दिल से क्या चाहिए किसकी तलाश है ,
गुलाब को गुलाब ही समझ रहे हो, या सिर्फ एक पलाश है,
कुछ तो था जिसके पीछे तुम इतने दूर आगए,
वैसे था क्या वह; नौकरी, पैसा, घर, गाड़ी, इज्जत
हासिल कर लिया क्या सब; खैर नहीं किया तो करोगे तुम।
वैसे सफर में तुमने खुद को कितनी पीड़ा दी,
कितना खुदको तोड़ा–मरोड़ा, क्या तुम्हारा डर कम हुआ,
क्या तुमने सत्य को स्वीकारा, क्या तुमने खुद को स्वीकारा,
क्या तुमने आज मैं जीना सीखा; खुलकर जीना सीखा,
सच बताओ क्या तुम्हें सुकून मिला?
वो सब तो एक पाश था जिसे सपनों का नाम दे दिया तुमने।
सपना वह नहीं होता जो पूरा होकर खत्म हो जाए,
सपना वह होता है जो हासिल कर के जिया जाए।
जब सब समझ आए तब ज्यादा सोचना मत,
खुद को फ़िज़ूल में कोसना मत, बस ठंडे पानी से मुंह धोना,
आंखें बंद कर एक गहरी सांस लेना, अपने सपने के बारे में सोचना
और हल्के से मुस्कुराना!
उम्मीद है तुम जैसे थे, वैसे ही हो और वैसे ही रहोगे...!-
क्यूं सर को झुकाए रखते हो तुम?
आंखो में पूरा समंदर समाए रखते हो तुम.!
तुम्हे देख के लगता है तुमने पूरी
जिंदगी इत्मीनान से गुजारी होगी,
क्यूं हर लम्हें में खुदको कसूरवां समझते हो तुम.!
हालाकि तुमने सभीके सपने पूरे किए
जानें कितने अधूरे ख़्वाब दबाएं रखते हो तुम..!
बचपन तुम्हारा गांव के छांव में बीतता रहा,
जवानी तुम्हारी जिम्मेदारी की कड़ी धूप में बीती,
सबको सब दिया तुमने, इसी बीच ख़ुद को खो दिया तुमने,
अभी जो गुजर-बसर करनी है, वो अपने उसूलों पर करना तुम.!-
डिअर कॉम्रेड,
खुप द्वंद्वामध्ये आहे की तुझ्यातल्या कोणत्या पात्रासाठी लिहू !
मनातल्या भावना समजून घेणाऱ्या प्रियकरासाठी,की नेहमी सावली म्हणून सोबत असणाऱ्या मित्रासाठी?येताना नचुकता खाऊ आणणाऱ्या व सर्व हट्ट पुरवणाऱ्या बापासाठी,की आजारी पडल्यावर काळजीपोटी रात्रभर जागणाऱ्या आईसाठी?लाडालाडात कुशीत येणाऱ्या लहान मुलासाठी,की प्रचंड लाड करणाऱ्या व प्रेमाने कुशीत घेणाऱ्या नवऱ्यासाठी! किती वेगवेगळी रूप आहेत तुझी आणि किती चोख भूमिका निभावतोस प्रत्येक वेळी!
मला नेहमी विचारतोस माझ्यात काय पाहिलंस?तुझ्यात जे पाहिलं ते आजतागायत कोणामधेच पाहिलं नाही;संयमी पण तितकाच हजरजबाबी, हळवा पण तितकाच कणखर,निरागस आणि तितकाच अथांग! तुझ्यासारखे पुरुष आता बोटावर मोजण्याइतके राहिलेत,त्यात मला तू मिळलास मी सुदैवी नाही का मग?माझ्यासोबत असताना तुझ्यामध्ये स्त्रैणता असते,पुरूषार्थाचा फुसका फणा कधीच काढत नाहीस,किंबहुना तुझ्यात तो नाहीच!मला कंटाळा आल्यावर जेवण बनवतोस आणि जेवायचं कंटाळा आला की जेवण भरवतोस सुध्दा! ट्रेन मद्ये प्रचंड गर्दी असताना,दोघेही दमलेले असताना,तुझा पाय दुखत असताना देखील सीट रिकामी झाल्यावर तु मला बसायला सांगतोस,तु तुझ्या परिघातल्या या ज्या ज्या गोष्टी शक्य आहेस त्या त्या सर्व करतोस बऱ्याचदा परिघाबाहेर ही जातोस,तुझी धडपड समजते मला.जगण्याचं समाधान देतोस अजून काय लागतं एखाद्याला जगायला??-
हमे हमेशा यही लगता रहा की हम दूसरों से अलग है
दूसरों से बेहरत है, उनसे ज्यादा काबिल है।
हमने कभी कोशिश नही की सर्वसाधारण बनने की
साधारण बनना तो हमे कभी सिखाया ही नहीं गया।
हमने हर जगह अव्वल आना चाहा , और आए भी।
क्या हुवा अव्वल आने से? बाते हुई.. तारीफें हुई..!
और उसके बाद क्या हुआ? बस रह इक गहरी ख़ामोशी..!!
ऐसा अव्वल स्थान किस काम का जिसका परिणाम उदासी है।
जब की हमे बनना चाहिए था सबसे आम, सबसे साधारण।
लोग महान अव्वल आने से नही बनते, साधारण होने से बनते है।
हम क्यूं नहीं समझे की आम बनना, साधारण बनना हारना नहीं होता ।
ज़िंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा हमने उस दौड़ में लगा दिया जिसमे
हमे कोई दिलचस्पी नहीं थी, ये बात हमे बहुत देर से समझ आई।
हम हर आसान चीज़ को मुश्किल बनाते गए , ज़िंदगी को भी।
हमे आसान चीज़े, आसान रास्ते गिरे–पड़े से लगते रहे ।
हम ऐसे सोचते रहे की यही हमारी दुनिया है और हमेशा रहेगी,
जब की हम मुसाफ़िर थे और मुसाफिरों की कोई मंज़िल नही होती।
ज़िंदगी ने हमे कभी वो नहीं दिया जिसकी हमे चाहत थी,
ज़िंदगी ने हमे वो दिया जिसकी हमे सबसे ज्यादा ज़रूरत थी।
माफ़ करना ज़िंदगी तुझे गलत समझा,तुझे अपने आप से अलग समझा।-
तुम्हारा नाम फिर से रखने का मौका मिलता तो
प्रेम से उपर उठकर मैं उम्मीद रखती...!
तुम्हारा चेहरा,तुम्हारी आंखें, तुम्हारी हंसी,
तुम्हारी बातें, हमेशा उम्मीद से भरी हुए हैं।
ज़िंदगी जीने के लिए प्रेम की आवश्कता है
ये आधा सच है, हालाकि ज़िंदगी की नीव
उम्मीद पर टिकी है, और मौत की भी..!
मामूली सी उम्मीद से हम पूरी ज़िंदगी काट सकते है।
गिर गए तो उठने का हौसला उम्मीद सिखाती है।
हार गए तो फिर से लड़ना उम्मीद सिखाती है।
जीवन और मृत्यु के बीच का सफ़र उम्मीद ही है।
जेब में जीवन काटने के लिए हमेशा होनी चाहिए
विश्वास से भरपूर इक चुटकी उम्मीद....!-
आज पुरानी फ़ोटो देखकर लगा की,कितने खुशमिजाज थे हम बचपन में।
हम बेखौफ हो कर कहते थे की,बड़े हो कर मुझे ये बनना है, वो करना है,
हालाकि बड़े होकर हम वो कुछ भी बन या कर नहीं पाते।
बचपन में कुछ ख़ास करने को था नहीं,सिवाय खेलने के और सपने देखने के ।
बचपन में कुछ नहीं था लेकिन सुकून था,आज उससे विपरीत परिस्थिति है।
खुशमिजाज की जगह अब उदासियत ने ले ली
और बेखौफ की जगह जिम्मेदारियों ने ले ली।
हमे सिखाया गया की बड़े होकर बहुत बड़े बड़े काम करने है,
घर, गाड़ी, नौकरी, घर की ज़िम्मेदारी आदि।
हमे क्यू नही सिखाया गया की बड़े होकर भी
बचपना किया जा सकता है, बच्चे बनकर जिया जा सकता है।
हम ढूंढते रहे हमारा बचपन पुरानी तस्वीरों में, खिलौनों में, यादों में।
हमे ख़बर तक नहीं हुई की ज़िंदगी का सबसे हसीन पल हमने
इसी कारणवश बरबाद किया की बड़े होकर क्या क्या करना है।
आज पीछे देखते है तो बचपन हम पर हंसता है ।
बड़ी ज़िद थी बड़े होने की अब भुगतो ये चिड़ाता है।
खैर अब क्या बात करनी इसपर, बहुत देर हो चुकी है अभी।
जाते जाते बचपन को गले लगाया, उसने कान फुसफुसाया की
खुल के जियो, बैखौफ सपने देखो वैसे ही रहो जैसे बचपन में तुम थे।
उम्र के साथ चलो लेकिन बचपन बरकरार रखो,
वैसे भी किसी मशहूर शायर ने कहा है कि,
ऐ उम्र ! कुछ कहा मैंने, पर शायद तूने सुना नहीँ..
तू छीन सकती है बचपन मेरा, पर बचपना नहीं...!-
इक होता है प्रेम करना,
दुसरा होता है सम्मान करना,
और तीसरा वो है जो तुम मुझसे करते हो।
तुम मेरे सामने हमेशा अपनी हार स्वीकार करते हो।
और झुका देते हो अपने मस्तक को और अपने आप को भी,
उस निम्न स्तर तक जहाँ तुम अपने जीवन कि उस स्त्री को
ये एहसास दिला सको कि वो पुरुषों से ऊपर है ...!
कभी कभी लगता है तुम पिछले जनम में प्रेम में डूबी हुई स्त्री होगें।
जिस ने इस जनम में पुरुष का रूप लिया है,
लोगों को सिखाने के लिए की, पुरुष भी
प्रेम पाने के लिए तपस्या कर सकते है..!
तुम पुरुष के रूप में जन्मी सती, पार्वती, सीता और मीरा हो।
"मीरा" जिसने साधारण से प्रेमी को ईश्वर बना दिया
अपनी भक्ति से, हालाकि वो प्रेमी उसका था भी नहीं।
मैने तुम्हारे हृदय के आखरी छोर तक सफर किया है
वहां मैंने पाया प्रकृति की सबसे खुबसूरत रचना
अतिसंवेदनशील, गरिमामय, और प्रेम में डूबा हुआ पुरुष..!-
अक्सर लड़कियो की ख्वाहिश होती है की
उनपर कविता लिखी जाए।
और कईयों पर लिखी भी गई सुंदर कविताएं।
लेकिन जिनपर नही लिखी गई उनका क्या ?
वो पड़ी होंगी कई कोने में किसी पुराने ड्राफ्ट की तरह
और उन्हें खोखली कर देती होगी थोपी गई मजबूरियां।
हमने ज़रूरी नहीं समझा वो कविता पढ़ना,
जो कभी किसी पर लिखी नही गई ।
हमे बस वो भाया वो दिखा गया,
जो जोरों–शोरों से लिखा गया....!-
आज बड़े दिन बाद थकान सी लग रही थी,
आज थोड़ा ठहरने का निश्चय किया और साहस भी।
ये गलत है कि थक जाने के बाद हम हार जाते हैं
बल्कि हार जाने के बाद हम थक ज्यादा जाते हैं।
बोझ हार का नहीं एक नई शुरुआत का ज्यादा थकाऊ काम है।
पैर और मन में से मन खड़े होने में ज्यादा नखरे दिखाता है।
पैर तो झटपट खड़े हो जाते हैं. ... जिंदगी टिकाने को।
थोड़ा ठहरने के बाद बहुत सी चीजें अलग नज़र आई।
जो जैसे थी उससे कई गुना सुंदर और अनोखी लगी ।
पहले सूरज–चांद का काम सिर्फ दिन–रात की ख़बर देना था।
आज सूरज और चांद को दिखती हू तो,हल्की सी मुस्कान आती है।
इतना खूबसूरत विशालकाय आसमान और
तारों की चादर ओढ़ी हुई हसीन रात, मेरे नजरों से भला कैसे छूट गई?
चलना,ठहरना,साहस,भय,निश्चय,प्रेम,द्वेष,जीवन और मृत्यु
मेरे लिए अभी ये सब के अर्थ "एक" ही है...!
"एक" को कितना तो चाहा जा सकता है ..!
"एक" में कितना तो अनंत रहा जा सकता है।
कितनी देर तक तका जा सकता है वो "एक"
कितनी तरह से लिखा जा सकता है वो "एक"
तुम्हें देखती, सुनती, पढ़ती हूं तो लगता है
"एक" का कितना महत्व है...!-