छोड़ इस अंधेरे को मुझे रोशनी में आने दो,
इस कश्ती को अब भंवर से निकल जाने दो,
स्याह रातें बर्बादी का सबूत दे रही हैं,
चांद तारों के खेल में उलझी रातों को अब सुलझ जाने दो,
सिखला दिए जिंदगी ने जाने कितने फलसफे यूंही,
सारी रेत गिरने से पहले मुझे अब घर जाने दो,
दौर ए मौसम बारिश का आ गया है,
सहरा से आए इस मुसाफिर को अब भीग जाने दो,
मिल लिया मैं हर रोज की बला से,
अब इस कतरे को फकत समन्दर में मिल जाने दो,
नहीं बंधना मुझे किसी भी रिश्ते में अब,
वक्त की डोर में बंधी सांसों को अब खुल जाने दो.
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