संदीप कुमार  
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Joined 30 November 2018


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धर्म घर से निकल कर रोड़ पर आ जाए तो उदमाद कहलाता है
और चल कर अगर धंधे में आ जाए तो भ्रष्टाचार कहलाता है

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21 DEC 2023 AT 18:40

कुत्ते चिल्लाते सरे आम
मिडिया भौंके,फाड़े कान
जनाब चूस कर खाए आम
ऑर्डर के गुलाम
चोबीस घंटे करे काम
जले किसान मरे जवान
बोली लगाए दो दलाल
झोला उठाए सेवा प्रधान
तमाशा करते सरे आम
ऑर्डर के गुलाम
ऑर्डर के गुलाम।

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21 DEC 2023 AT 18:36

शाह तेरे दिल से देखी तेरी दिल्ली
दाग़-ए-दिल्ली कभी ऐसी तो न थी.

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कोई आम बात है क्या,
तेरा हंसना
आसमां को देखना
तारों का टूटना
और चले जाना।

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17 NOV 2023 AT 17:24

उसे पता था के मरेंगे दहलीज़ पर उसकी
तो उसने यूॅं किया के पता बदला

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नो दिन धूप दिये की खुशबू ताज़ा मोहल्ले में
फिर बना अंडा चिकन कबाब मटन पुलाओ मोहल्ले में

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इंसान था इश्क़ से पहले मैं
यूॅं ही नहीं रहता बिखरा बिखरा सा मैं

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तुम्हारे अश्क अब बहे हैं
जब सागर औ दरिया सूख गया हमारा।

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दुःख तो सिर्फ यादों का है
वरना इंसान तो रोज़ गुजरते हैं।

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जब आपको कोई रोकने टोकने वाला नहीं रहता
तब समझ लेना आपकी value zero हो चुकी है।

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