आज हमको अच्छा अच्छा लग रहा है
हस रहे हों फूल ऐसा लग रहा है
तितलियां ये झरने नहरे नदिया वदियां
आज सब कुछ अपना अपना लग रहा है
बात जबसे हो गई है उनसे अपनी
हाय अब सब पहले जैसा लग रहा है
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रखेंगे ज़िदा अपनी यादों को हम अब
इन्हें अब सोच के रोना है हँसना भी
बहुत बातें थी जो करनी थी बस तुमसे
अभी था सूनना तुमको था कहना भी-
गए हो तुम बनाकर इस कदर तन्हा
हमारी रातें शामें औ' सहर तन्हा
नही तस्वीर इक छोड़ी कहीं तुमने
किया है हाय तुमने दर बदर तन्हा
ये इतना क्यूँ भला सहते है हम दोनो
इधर हम तन्हा औ' तुम हो उधर तन्हा
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हमे ऐसा किसी ने तोड़ा है इस बार
कि हम अब फिर खड़े होंगे तो गिर जाएंगे
लगेंगे बरसो तुमको भूल अब जाने में
ये धीरे धीरे तेरे अब असर जाएंगे-
चलो बैठो मिरे संग दरिया देखो
बिलखती चीखती सी दुनिया देखो
मुझे तुम चाहते थे जैसा पहले
मुझे तुम आओ देखो वैसा देखो
~sandeepmusafir-
लौट आते हैं वो जो चले जाते हैं
ऐसे पाले हैं हमने वहम सैकड़ों
लोग खाते हैं कसमें मुहब्बत में फिर
टूट जाते हैं इक दिन कसम सैकड़ों-
ग़ज़ल
प्यारी प्यारी बातें है बस
झूठे झूठे वादे है बस
सत्ता में जबसे आएं हैं
देते फिरते धोखे है बस
नेताओं का क्या लेना है
झूठे आंसू इनके हैं बस
जब दिन आते वोटों वाले
तब कुछ गिरगिट आते हैं बस
इनके बातों में ना आना
झूठे आंसू रोते हैं बस
सड़के देखोगे जो तुम तो
अनगिन गड्ढे गड्ढे हैं बस
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रहें अनजान इक दूजे से हम कब तक
कभी हम मिल रहें हों काश इक पल हो
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ग़ज़ल
किसी के प्रेम में पड़ क्यूँ यूँ पागल हो
किसी की आहटें क्यूँ एक इक पल हो
मुहब्बत जितनी होगी और ये चाहत
ये मुमकिन है कि उतना गहरा दलदल हो
हमारी रात कटती ही नही है अब
फ़क़त सो चाहते हैं एक हम कल हो
न कुछ होगा फ़क़त सांसों के चलने से
बदन में चाहिए हरदम कि हलचल हो
चलो हम वस्ल की तारीख तय कर ले
न कोई झन्झट हो कोई न फिर छल हो
रहें अनजान इक दूजे से हम कब तक
कभी हम मिल रहें हों ऐसा इक पल हो
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