तन्हा जो चल रहे थे,
अरमान ढल रहे थे।
निकलने को उत्सुक,
जब प्राण झल रहे थे।
छला गैरों की तरह,
उसने मन को भी तभी।
थे गिनती के अंतिम,
वो स्वांस चल रहे थे।- सनातनी_जितेंद्र मन
31 MAY 2021 AT 16:42
तन्हा जो चल रहे थे,
अरमान ढल रहे थे।
निकलने को उत्सुक,
जब प्राण झल रहे थे।
छला गैरों की तरह,
उसने मन को भी तभी।
थे गिनती के अंतिम,
वो स्वांस चल रहे थे।- सनातनी_जितेंद्र मन