Smriti   (स्मृति..)
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Inalienable | a proud dentist
Novice writer
Joined 13 July 2018


Inalienable | a proud dentist
Novice writer
Joined 13 July 2018
12 APR 2022 AT 17:45

तुम कभी मंजिल थे मेरे,
चंद लफ्जों ने राहें बदल दि
डर था, अकेले न पड़ जाऊँ कहीं
पर वक़्त ने नयी मंज़िलें दे दि
उस शाम अंधेरा बहुत था,
जहाँ ख्वाहिशें की चिता
रोशनी बिखेर रही थी
पर आगाज प्यार का था,
न जाने कैसे रुह जी रही थी।

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1 OCT 2021 AT 8:11

दर्द कुछ इस कदऱ है

जहाँ "Raatan lambiyan" भी बेअसर है

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1 FEB 2021 AT 23:25

तु समंदर का वो किनारा हैं

जिसकी तेज़ लहरें राहें भटका दे,


और मैं सवार उस कस्ती में

जिसकी पतवारें बस हवाएं हैं ।


- स्मृति..

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8 OCT 2020 AT 12:06

बारिश की बूंदें💦

इनका भी बड़ा अजीब किस्सा हैं।
कहने को तो ये आज़ाद हैं ।।
पर असल में बादलों से आज़ाद होकर
जमीं के जकड़ में होते हैं।।
कुछ बूंदें गर इस रास्ते भटक जाए तो
उनका अस्तित्व,
उनका अस्तित्व
ही मिटा दिया जाता हैं।

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28 AUG 2020 AT 14:34

बस भी कर ए जिंदगी तू कितना रुलाएगी
गलत फ़ैसले ले लिए थे हमने,
उसकी सज़ा तू कब तलक सुनाएगी ।

अब तू, कोई मदद ना भेजना
एक एहसान कर दे
इस दिल को पहले जैसा लाल कर दे।

कोई मोहब्बत नहीं चाहिए
एक हौसला अदा कर दे
अंधेरी सी ज़िंदगी में, एक रोशनदान दे दे।

खून मेरा है, पर हर कतरा लगे उधार का
ए ख़ुदा! एक रहम कर
इस शरीर को, मुझसे मोहब्बत करवा दे।

हर दर पर बैठा मर्ज़ है आज
एक, फ़रमान अब तू जारी कर
या तू खुद जमीं पर आ, या कुदरत को अगाह कर दे!!

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23 AUG 2020 AT 16:24

गमलों से लटकते पौधे
सी हो गई हूं कुछ

न जमीं छू सकूं,
न जड़ों में समां सकूं।

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30 JUL 2020 AT 10:50

बहुत कुछ जोड़ा
बहुत कुछ तोड़ा

जो गलतियां हुई लड़कपन में
एहसास हुआ यौवन में

हाथ आए मौ़के कई छूट गए
जैसे किस्मत मानो रूठ गए

वैसे, शिकस्त लम्हें भी ढेरों थे
जिनके चिराग ढूंढ़े इन अंधेरों ने

जीत भी थी कुछ लम्हों में
जिसकी चीखें गूंजी हर कोनों में

हो पास मंदिर या दूर मजार
हर रस्ते, इन आंखों ने नापे थे

हो दूर मंज़िल, या पास दिवार
हर लम्हें होंसले मेरे पक्के थे

पर आया सुकूं है, हर बार
क्योंकि हर फ़ैसले, केवल मेरे थे।

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26 JUL 2020 AT 9:13

Please give it a watch 🙏

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11 JUL 2020 AT 14:25

गर्भ में हजारों कोशिशें थी
मुझे गिराने की
मैं ठहरी जिद्दी, हार ना मानी
अड़ी रही, डटी रही
पूरे नौ महीने सात दिन

आज भी कोशिश जारी है
जान से जान को निकालने की
हर तरफ महामारी है
छे गज कपड़ों में लपेटने की
जिधर देखो तैयारी है

पर अबकी खेल में शह की मेरी बारी है
रानी मैं ,राजा को अब ख़ैर मनानी है

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11 JUL 2020 AT 1:25

गर्भाशय में जब था मैं लाल
मां को आते अनेक सवाल

लड़की या लड़का,
रंग गोरा या सांवला!?

नाक सीधी या टेढ़ी,
मुंह गोल या लंबा!?

मैं जब जब पैर सीधे करता
मां होती खुशी से बेहाल

इतने कष्ट देता मैं अंदर से
मां सब हसीं खुशी लेती संभाल

खिला लो कद्दू या हरी साग
सब खा लेती बिन किए इनकार

टक टक देखे हर दिन वो मुझको
ना जाने कौन सा नूर दिखे दिन - रात?!!

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