मेरे दर्द को
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रूह के रिश्तों की.,
यही खूबी है
महसूस हो ही जाती
कुछ बातें अनकही सी
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कभी कभी इंसान थक हार कर ठीक वैसा ही बन जाना चाहता है
दुनिया जैसा उसपर इलज़ाम लगाती है...
सफाई देने से ज्यादा आसान लगता है शायद जो जैसा समझे वैसे हो जाना...-
अज़ीब है ना...
उससे प्रेम ही है मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी...
और उससे प्रेम ही है मेरी सबसे बड़ी ताक़त...-
अज़ीब है ना...
उससे प्रेम ही है मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी...
और उससे प्रेम ही है मेरी सबसे बड़ी ताक़त...-
जाने की जल्दी में लोग...
अक्सर भूल जाते हैं...
सब-कुछ कहाँ ठीक से बंद कर पाते हैं...
कभी कोई खिड़की उम्मीद की...
तो कभी कोई दरवाज़ा इंतज़ार का...
ज़रा-सा खुला छोड़ ही जाते हैं...
लोगों को तो ठीक से जाना भी नहीं आता...-
ये कैसी कश्मकश है कैसे किसे बताएं...
रोना भी आ रहा है और रो भी न पाए...-
कभी-कभी सबकुछ ठीक है के बीच ये समझ नहीं आता कि आख़िर क्या है जो ठीक नहीं है...
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मरने से पहले एक बार...
कुछ अच्छा वक़्त गुज़ारना चाहती हूं...
क्या मैं कुछ ज़्यादा चाहती हूँ???-