बात कैसे सुलझती,कोई कुछ बोला ही नहीं,
दर्द किसे कितना था?,किसी ने ये तोला ही नहीं,
दिल ने महसूस किया,जब अपनों में बेगानगी को,
जो बेगाने थे,दिल उनसे कुछ बोला ही नहीं,
मिट गई गुंजाइशें मिलने की,दर जो बंद मिला,
दर बंद उसने किया,हमने दर खोला ही नहीं,
काश दे आते बंद दर पर,इक अंजान दस्तक,
अगर वो बर्फ है,कहीं मैं आग का गोला तो नहीं,
कमियां मेरी उसने सीने अपने में छुपा रखी हैं,
उसने बताया नहीं,मैंने भी दिल टटोला ही नहीं,
मेरे दिए दर्द तूं संभाल,तेरे दर्द दिए मैं रखता हूं,
ले हो गए जुदा,"सादिक,"अब तो कोई रौला ही नहीं,-
मुर्शिद सब जानते हैं,उन्हें क्या बताना,
मेरी आशिकी,दिल्... read more
खुद से ईमानदार हो,ईमान के लिए,
दर कब बंद हुआ है, बेईमान के लिए,
तासीर पसंद है मुर्शिद को,उस शख्स की,
भला मांगता है ,जो सदा, जहान के लिए,
जरूरतें सदा रही है,ईमानी जेब से तले,
हसरतें वजह हैं,बेइमान शान के लिए,
कोई दे सदा,जगाए मुझे,हस्ती की नींद से,
दर-ए-मुर्शिद कोई ले जाए,मन - स्नान के लिए,
लब जब भी खोलता हूं,अहम ही अहम है,
मेरी आवाज नामाकूल है,अजान के लिए,
कहता है जहान"सादिक", मुर्शिद का फकीर है,
और क्या लक़ब चाहिए,पहचान के लिए
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लगता है आज बात मेरी मान लेगा वो,
पर करेगा वो ही,इक बार जो ठान लेगा वो,
बेअसर होते देखा है मैंने,लफ्जों के असर को,
आंखों से बोलो, रमज़ को पहचान लेगा वो,
दिल को ना आरजू है,किसी और हमदर्द की,
बस वो ही मेरा हमदर्द है,मेरी जान लेगा वो,
सजदे में सिर झुका,झूठी शान छोड़कर,
नजराने में सिर और ईमान लेगा वो,
बिछा देगा दुनिया,मेरा मुर्शिद,उनके कदमों में,
इक बार,जिसको अपना मान लेगा वो,
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खुशियाँ जमाने की कदमों में बिछा देता है,
गुमनाम जिंदगी,शोहरत से सजा देता है,
रोज कहता हूं,मेरे मुर्शिद,मिटा दे मुझको,
वो रोज मुझे,कुछ नया और बना देता है,
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हो जाए दीदार उनके,इक ही सदा से,
दिल को मयस्सर,ये राहत तो नहीं है,
किस शै से अब बहलाए,दिल अपने को,
तेरे सिवा कोई दूसरी,चाहत तो नहीं है,
मुझसे मत पूछो,संग काफिले में कौन है,
पीछे मुड़ कर देखना,आदत जो नहीं है,
हाथ में है तस्बीह, चितवन में है गुनाह,
ये जो भी कुछ है,इबादत तो नहीं है,
देखता है खुदा ये भी, तूं मस्जिद के बाहर क्या?
सलूक बुरा,दरवेश हो,खिदमत तो नहीं है,
तय होगा ना इस जन्म भी,इक कदम का फासला,
इतनी बुरी किसी और की,किस्मत तो नहीं है,
हर बार गुनाह कर के,हर बार तौबा करना,
पूछ लेगा मुर्शिद,"सादिक" तेरी फितरत तो नहीं है
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तूं सच में क्या है "सादिक," खुद को क्या दिखाता है,
जरा तन्हाई में खुद को देख,सब पता चल जाता है,
मेंरी हसरतें कुछ और,मेंरे कारनामे और हैं,
जो एक पग भी ना चला, कहां मंजिल पाता है,
मैं रुका हुआ पोखर का पानी, मुझ में बस है गंदगी,
बिना रवानगी,दरिया भी,ना सागर पाता है
मैं अंधेरे में गुनहगार,दिन में नमाजी बना तो क्या,
दोहरी फितरत का आदमी, कहां खुदा को भाता है,
देख कमाल-ए-अक्ल अपनी,जो अमल से कोसों दूर है,
गुनाह लफ्जों में पिरो,दुनिया को शायरी सुनाता है,
या मुर्शिद,अब इश्क नही, सिखा तौबा करना,
दिल दावा-ए-इश्क कर,गुनाह में डूब जाता है,
सुना "सादिक" ने है,मेरे "मुर्शिद"तेरी रहमत अजीम है,
जो गुनाह से तौबा करता है,तेरी रहमत को पाता है,
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बुझते अंगारों को, फिर से,हवा दे दी,किसने?
थमते दिल को,फिर से, दवा दे दी,किसने?
सीख गए थे गुल- ए - अरमां,खिजां में,बसर करना,
मुरझाते फूलों को,खुशनुमा फिजा दे दी, किसने?
जी के गुमनाम हमको,था गुमनाम मरना,
कर के मशहूर हमको,सजा दे दी, किसने?
तुम बिछड़ के भी दिल ने बसाई थी दुनिया,
तुम्हे फिर से दिल में जगह दे दी,किसने?
बोले मुर्शिद,आ "सादिक",सब हसरतों को छोड़,
तेरी हसरत है अभी दिल में ,ये सदा दे दी,किसने?
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कायम थे पंख,खुले थे पिंजरे,
परिंदे फिर भी,कैद से,रिहा ना हुए,
रोशन शमां से आकर,लिपटे परवाने,
जल मरे,लेकिन, जुदा ना हुए,
डूबा सूरज,कमल ने बंद की पंखुड़ी,
आगोश में रहे भंवरे,विदा ना हुए,
क्या कारण है, कि है मेरी शायरी बेअसर,
क्या कायदे, हमसे इश्क में, अता ना हुए,
शायरी कैसी,"सादिक",जिसमे दर्द ए रूह नही,
वो इश्क क्या,जिसमे, खुशी से फना न हुए,
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मैं तुमको ये बताना चाहता हूं
मैं तुमसे क्या छुपाना चाहता हूं
कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो,
मैं हां में हां मिलाना चाहता हूं
अदाकारियां बहुत दुख दे रही हैं,
मैं सच में मुस्कुराना चाहता हूं,
ये इश्क की अमीरियां तुमको मुबारक,
मै अब खाना कमाना चाहता हूं,
मुझे तुमसे बिछड़ना ही होगा,
मै तुमको याद आना चाहता हूं,
----femi badayuni-----
दिल की परेशानियों का कोई हल,है तो बता,
हों ये मसले सरल,कोई हल,है तो बता,
ना सुना मुझे,उसके,किस्से,कहानियां,
हो संग उसके जिया,कोई पल,है तो बता,
अकेले ही मिले, राही,इस मंजिल की राह के,
क्या तुझे मिला कोई दल,है तो बता,
है जज्बात, ए कामिल,ना लगा,शायरी के कायदे,
हो विवाद का कोई हल,है तो बता,
दीवानों ने पूछा,"सादिक,"मुर्शिद के खुमार में,
कहां कोई दूसरी शक्ल,कोई है,तो बता-