सलिल @ सलिल   (साँसे)
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Joined 22 May 2021


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इश्क जरूरी है
कभी मजबूरी है
कभी मजदूरी है
कभी यह चोरी है
कभी सीनाजोरी है
कभी मुखबिरी है
कभी जोराजोरी है
कभी बहुत दूरी है

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खोई खोई सी रहती है जिन्दगी अक्सर
ढूँढती रहती है ना जाने कौन सी डगर

खो गया है कोई अजनबी सा एक शहर
दीवारों में एक अक्स छुपा है इस कदर

कभी धूप, कभी छाँव नहीं है मयस्सर
जिन्दगी फिर भी आज सबसे बेखबर

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मुस्कराने की भी कीमत वसूल लेते हैं
कैसे कैसे यहाँ लोगों के उसूल होते हैं

हसरतों को इतना ना बढ़ाकर रखिए
अक्सर काँटों के बीच में फूल होते हैं

बुरांश और पलाश की बातें तो ठीक हैं
खाली हाथ कहाँ सलाम कबूल होते हैं

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हाँ
मैं हिन्दू हूँ
गरल का गरजता
सिन्धु हूँ

एक सीता के हरण पर
दहकी लंका
हुआ सम्पूर्ण विनाश
लौटे नहीं राम
रख हाथों पर हाथ

हाँ
मैं हिन्दू हूँ

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आखिर कोई लिखता है
क्यों
अन्तर्मन का विद्रोह
या यश का मोह

कुछ न कर पाने
की व्यथा
कागज काले करने
की विधा

लिखा नहीं कभी
नायकों ने उपन्यास
हारे मन का ही
अक्सर
होता है कलाप

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हर रोज उम्र नए पंख लेती है
हौसलो की नई उड़ान होती है
बटोर लीजिए सब मुस्कराहटे
उम्मीदों की कहाँ शाम होती है
✍️ सलिल

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एक अफ़साना सी है जिन्दगी
कोई इबादत कहे कोई बन्दगी
कागज कलम की हस्ती क्या
जो बयान करे मेरी सन्जीदगी

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शुभ प्रभात

अपना ही है नव वर्ष
चहुं ओर हर्ष ही हर्ष
सब मिल करे विमर्श
प्रकृति का है उत्कर्ष

पुष्प सब प्रफुल्लित
आज धरा भी हर्षित
कृषि हुई है पल्लवित
आम में बौर सुगंधित

नव दिन नारी दिवस
प्रकृति का है उत्सव
आओ झूमे नाचे सब
सृष्टि का प्रकट दिवस

✍️सलिल
🎊 नव वर्ष विक्रमी सम्वत 2082 मंगलमय हो 🎊

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कुछ रंग उधार थे
जिंदगी में प्यार के !
गुलाल यूँ ही उछाल दिया
किसी का नाम पुकार के!!

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सलाम का भी जवाब नहीं
दुआ की क्या बात है !
जिंदगी में कुछ लोगों से
मिलना बस इत्तफाक है !!

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