सजग लेखनी 🇮🇳   (लेखनी✍️)
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Joined 24 February 2020


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Joined 24 February 2020

बचपन की ख्वाहिश बड़े में रूठ जाती है
जैसे पत्ते की नाव नदी में डूब जाती है

कली सी नाजुक कभी हम भी हुआ करते थे
हा कलियां भी खिलकर फिर सूख जाती है।

ख्वाब , ख्वाहिश , यादें ऐसे छूट जाती है
जैसे कांच की बोतल गिरकर टूट जाती है।

~वैशू
— % &

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जिस हाल में हूं कोई तमाशा नहीं हूं मै
दर्द बहुत मुझमें बनाता नहीं हूं मै....

कमजोर ना कहलाऊं चुप ही रहा हूं मै
धीरे धीरे आंसू घुट के पी रहा हूं मै....

लोगों की कहीं बातों से नाराज़ नहीं हूं मै
हा मगर इन बातों से हैरान नहीं हूं मै....

मंजिल नहीं मेरी एक सफर रहा हूं मै
हर हाल में ही तो ज़फ़र रहा हूं मै....

हा मानता हूं बात सबका दोस्त नहीं हूं मै
फिर भी है ये बात दुश्मन नहीं हूं मै....— % &

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~वैशिव— % &

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इतनी बुलंदियों पर मेरा यार हो
सारे फरिश्ते भी उसके कर्जदार हो
सिर्फ जहां की ही नहीं यारा
पूरी कायनात की खुशियां तुझ पर निसार हो.....

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं यारा 😍😍🎂🍫🍫🍫

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क्या कहूं उसकी हर
अदा कमाल है,

उसे देखूं कि
उसे मांगू
खुदा से
ए खुदा
ये कैसा उलझन भरा
सवाल है....

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मेरे मृत शरीर ने मां का कितना हृदय दुखाया होगा,
आत्मा में मेरी परमात्मा से मिलने का स्वार्थ समाया होगा।

जा रहा था अंतिम प्रमाण मेरे होने का
मेरे अपनो ने कैसे साथ रहते शरीर से हाथ छुड़ाया होगा।

हा किसी का बुरा नहीं चाहा ना ही किया मैंने
आंसुओ को कुछ लोगों ने थोड़ा तो छिपाया होगा।

जो हुआ ये नियम था कहकर सबने
कैसे हृदय को यारो अपनो ने पाषाण बनाया होगा।

मुझे कंधो पर ले जाते हुए,
कांपे होंगे उनके हाथ जब मुझे जलती अग्नि पर लिटाया होगा।

रोएंगे होंगे मुझसे नफरत भी करने वाले लोग,
क्योंकि इतना तो हृदय किसी का नहीं दुखाया होगा।

उड़ गई है चिड़िया अपने आंगन से उसके रखवालों ने
अपनी भावनाओं को भी ना जाने कैसे दफनाया होगा।

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आदत सी है अब सब सह जाने की
किसी से मुझे क्या ही गिला होगा।

ऐसे तो कोई भी मौन नहीं हो जाता ,
ज़िंदगी से मुझे कुछ तो मिला होगा।

खिलौने सोचूं तो नजर नहीं आते,
शरारतों ने दम कहीं तो तोड़ा होगा।

बचपन की कैद ने सहमा सा दिया,
जिम्मेदारियों ने कहीं तो घेरा होगा।

पक्षी के पंख खुलते तो खुलते कैसे,
कैद से उसे अभी ही तो छोड़ा होगा।

सबने अपना ही बस फैसला सुनाया,
वैशू तुम्हें क्या इन हवाओं ने भी सुना होगा।

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कभी मुश्किल से भरे तो कभी आसान हो गए,
जीवन में ऐसी ऐसी राह देखी परेशान हो गए।।

जो थे अपने वो हमसे हम उनसे अंजान हो गए,
गहरा दर्द देकर हम ज़ख्म का निशान हो गए।।

आए ज़रा देर हुई मुझे क्या किससे कहूं मैं,
कैसे अपनी ही महफ़िल में आज अंजान हो गए।

नहीं लगाई थी मैंने आग ना ज़ख्म दिया था, देखो
फिर भी यार दोस्तों की नजरों में बदनाम हो गए।

कि अपने दर्द का वजूद तुमको क्या समझाऊं मै,
क्या होगा दर्द मेरा जब खुद के घर में खुद ही
मेहमान हो गए।

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फकत एक मुलाक़ात मांगी है तुमसे,
मिलो जी कभी ये गुज़ारिश है तुमसे।।

कैसे बताऊं क्या मेरा हाल है अब,
मिलेंगे जब तो सबकुछ बताएंगे तुमसे।

शिकायत नहीं है ना शिकवा है कोई,
सब है कुबूल, जी मिला ही है तुमसे।।

एक तेरा नाम लेकर तो जी लेंगे हम,
बिना कुछ कहे ही सब कह देंगे तुमसे।।

सोचूं कभी बिन तुम्हारे ये जीवन,
रुकती है सांसे हर सांस ही है तुमसे।।

फकत एक मुलाक़ात मांगी है तुमसे,
मिलो जी कभी ये गुजारिश है तुमसे।।

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