Sitara Bano   (Sitara)
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Joined 10 May 2021


Joined 10 May 2021
15 FEB AT 0:46

इंसानियत की आरती

आज एक अजीब-सा वाकया हुआ। मैं बाहर निकली ही थी कि सामने एक पंडित जी आरती की थाली लिए खड़े थे। बिना कुछ पूछे उन्होंने मेरी ओर थाली बढ़ा दी। मैं कुछ सेकंड के लिए रुक गई—क्या करूँ? आरती लूँ या मना कर दूँ? फिर सोचा, इसमें हर्ज़ ही क्या है? मैंने बिना किसी झिझक के आरती ले ली।

उन्होंने कुछ नहीं पूछा, न ही मेरी जाति या धर्म के बारे में कोई सवाल किया। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने मुझसे मेरी धर्म या जाति के बारे में कोई सवाल नहीं पूछा। उस पल मुझे एहसास हुआ कि इंसान को इंसानियत से ही देखा जाना चाहिए।

हम अक्सर सुनते हैं कि जब कोई इंसान गलती करता है, तो उसे उसके धर्म से जोड़ दिया जाता है। फिर मैंने महसूस किया कि गलती इंसान से होती है, धर्म से नहीं। लोग अक्सर जब कोई गलत काम करते हैं, तो उन्हें धर्म से जोड़ देते हैं, लेकिन क्या ऐसा करना सही है? हम सब एक जैसे इंसान हैं, और इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।

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11 FEB AT 20:08

"Dear महिला, तुम एक prime number हो अपने आप में कंप्लीट!

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8 FEB AT 19:27


शीशा कमज़ोर नहीं होता, तोड़ने वालें बेरहम होतें हैं।

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7 FEB AT 16:55


कुछ रिश्तें Plastic की तरह होतें हैं,
जो दिखते बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन
बस Pollution फैलाने का काम करते हैं।

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23 JAN AT 0:54

समझ कर भी नासमझ बनना चाहते हैं,
बस इस दिल को तसल्ली देना चाहते हैं।
की मेहबूब तुम्हारा सच्चा है।

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22 JAN AT 22:20

क्या कहा?
बिना घूंघट के रहना चाहती हो,
इससे समाज का नाम खराब होगा।
यह तो बड़ा सामाजिक मुद्दा है।
लेकिन जब एक महिला को पीटा गया,
उसे जिंदा जलाया गया, तो कह दिया,
"ये तो उसका घर का मामला है।"

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19 JAN AT 20:34

ब्रेकअप हो या तलाक हो,
दोनों एक जैसा ही होता है।
फर्क बस इतना है की
इश्क दो लोगो में होता है,
और शादी समाज के बीच ।

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19 JAN AT 20:21

बातें चल रहीं थीं कि बहू से ज़्यादा सेवा बेटी करती है। मैंने कहा, सेवा तो औरत को ही करनी पड़ती है, चाहे वो बेटी हो या बहू हो...

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19 JAN AT 18:39

इज्जत

ये कैसा इज्जत है,
जिसका ख्याल भी मुझे रखना है,
पर वज़ाहत इसकी कोई और लिखता है।
ये कैसी मालिक हूं मैं,
जिसकी रखवाली भी मुझे करनी है,
और गवाही देने का हक किसी और के पास है।

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12 JAN AT 11:22

तिरे ख्याल में ताकत तो बहुत है लेकिन,
इस आँचल को परचम बनने का हक़ कहाँ मिला।
जो लहराती हवा में फहराने की थी ख्वाहिश,
वो ख्वाब भी हमारे आँसूओं में बहा मिला।

हमें बंधनों में रखकर तूने इज्ज़त तो दी,
पर खुलकर जीने का साहस कभी ना मिला।
तिरे कहने से हम कमजोर नहीं हैं मगर,
बस मौका नहीं, खुद को जताने का मिला।

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