चलो फिर हुंकार भरते हैं,
बुझे मन में फिर से जान भरते हैं,
दिशा दीप्त का सही समय है,
आशायें ले ललकार करते हैं।
अभी कहाँ मंजिल आयी है,
रुकने की अब, ना कोई बात करते हैं,
पथ में कंकड़ पत्थर तो चुभते ही हैं,
लहू शेष है, चलो संग्राम करते हैं।
जीवन कुरुक्षेत्र सा साध करते है,
क्या खोया, क्या पाया व्यर्थ ही विलाप करते है,
कृष्ण की गीता, अर्जुन सा वार करते है,
श्रम का ‘तेज’, बाण सा, धनुर से प्रहार करते है,
पाने ‘सफलता’, एक बार फिर शंखनाद करते हैं,
सतत साधना, अविराम करते है,
दिशा दीप्त का सही समय है,
आशायें ले ललकार करते हैं।
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