मैं कलयुग का, काला जमाना देखा
देखा इज्जतदारों पे लगी कलंक को
मैं गरीबों को भूखे सोते देखा,
मैंने देखा, अमीरों को रोटी फेकते भी!
मैं दरिंदों को, निर्भया को नोचते देखा
देखा मैंने, कई काली रातों को!
पागलों को, इंसान सी बातें करते देखा,
देखा इंसान रूपी, ज़ालिम आवरों को!
मैं दोस्तों कि गद्दारी को देखा
देखा गैरों के संग, सोते महबूब को
मैं इंसानियत बेचते, इंसानों को देखा
वैश्यों को देखा इज्जत बचाते भी!
मैंने माँ-बाप को बिलखते देखा,
बेटों को देखा, माँ को घर से निकालते भी
मैंने पापा कि फटी कमीज देखी,
बेटा को देखा ब्रांडेड कपड़े पहनते भी!
मैंने खुद को, रातों को रोते देखा
अपने कलम से देखा, टपकते आँशु को
मैंने धर्म पे राजनीती करते, नेता को देखा
देखा मैंने, ज्ञान रूपी जलते गीता को!
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