Simran siddiqui   (Simran Siddiqui)
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Joined 22 February 2018


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Joined 22 February 2018
6 APR 2024 AT 2:23

झूठी मर्दानगी का मरहम अपने दर्दों पे अच्छा नहीं,
ज़्यादा भरोसा भी यकीनन इन मर्दों पे अच्छा नहीं।

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27 MAR 2024 AT 0:46

एक मर्तबा दिखता इश्क़ तेरा अंजाम को राज़ी सा,
तुझे जीत लेती मैं फ़क़त किसी ताश की बाज़ी सा।

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25 MAR 2024 AT 3:55

कोरे दिल के काग़ज़ पर एहसासों से तराशे लम्हे फ़िरभी, रद्दी में बिक गई महँगी मोहब्बत मेरी।

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24 MAR 2024 AT 8:11

इत्र मेरे यार का जाने किस बला का है, अर्सा हुआ गले लगाए मगर जे़हन में खुशबू बरकरार है अबतक।

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22 MAR 2024 AT 3:16

इतना बावरा हुआ, मेरे नाम पे महफिल लगा बैठा,
जैसे उड़ता जहाज़ नज़दीक-ए-साहिल लगा बैठा,

मैं ठहरी शायरा, फ़क़त शायराना अख़लाक़ मेरा,
वो समझा इश्क़ है और गलती से दिल लगा बैठा।

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21 MAR 2024 AT 0:47

ये मैले-इश्क़ के रोगी, मेरी मोहब्बत की पाकीज़गी में उतरे तो अदा-ए-तहज्जुद की ख़ातिर नींद से बेदार फिरेंगे।

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19 MAR 2024 AT 22:39

मासूमियत की बिंदी, माथे से यूँ उजाड़ता निकला,
मर्द तवायफ के कोठे से मर्दानगी झाड़ता निकला।

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18 MAR 2024 AT 13:34

काश तुझे भी मुझसे इश्क़ कभी थोड़ा होता।
हाय! इतना ना तेरी यादों ने मुझे तोड़ा होता,

आइने में ख़ुद का हाल देखूँ तो रो पड़ती हूँ,
ख़ुदसे नज़र मिलाने के लायक तो छोड़ा होता।

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16 MAR 2024 AT 1:14

किया मैंने रात के हर ख़यालों को दरगुज़र,
यार तेरे सब-के-सब आमालों को दरगुज़र,

क़िस्मत की लकीरों को मुट्ठी में क़ैद करके,
किया संग बिताए सारे सालों को दरगुज़र।

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15 MAR 2024 AT 0:45

चल इश्क़-ए-पाक़ हदों से दोनों जने गुज़रें।
मेरी दुआओं से होकर तेरी अड़चनें गुज़रें।

यार ज़रा करीब आ और यूँ गले लगा मुझे,
कि मेरे क़ल्ब से होकर तेरी धड़कने गुज़रें।

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