एक नदी के दो किनारे हैं.....जो कभी नहीं मिल सकते...!!
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ना अश्कों की ख़बर होती , ना ख़्वाबों का पता होता
तुझे देखा नहीं होता, तो इन आँखों का क्या होता।-
उसके बिना इक ख़लिश सी रहती है
मेरे ख़्वाबों में इक तपिश सी रहती है-
फिर उसके बाद मैंने कुछ नहीं खोया
वो मेरी ज़िंदगी का आख़िरी नुक़सान था।-
इक सवाल पूछना था
कि..........
कितने दिनों की इद्दत काटनी पड़ती है
जब इश्क़ तलाक़ दे देता है .....??-
तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगी
काश मैं ख़ुद ही सुलग उठूँ अँधेरी रात में
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उसकी दुआँए तो हासिल हैं ही मुझे
चाहिये तो उसकी नमाज़ के दम का तबर्रूक जाना!
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साँस भारी है , जिस्म हल्का है
आज का नहीं , ये दर्द कल का है
अश्क सूखे हैं, जुबाँ कटी पडी़ है
जिस्म के लम्स से आज फिर ख़ून छलका है
धूप आई है "मलाल" अरसे बाद चेहरे पर
खिड़की का आज मेरी, हवा ने परदा ढलका है!-
कई सालों बाद मैंने आज
अपना सँदूक खोला तो
बीच में दबी हुई
चंद तो नहीं...!!!
काफ़ी तस्वीरें
मुझे आवाज़ दे रहीं थीं
कि आ.....!!!!!
ले चलूँ तुझे उस दुनिया में
जो.........
'तेरी जवानी की दुनिया है
तेरे "दोस्तों" की दीवानी सी दुनिया है'
धुँधली आँखों से
साफ़ तस्वीरों को देखा, तो...!!
चंद आँसू गिर पडे़
और.....!!!
बेतहाशा यादें आँखों में तैरने लगीं
अचानक बाहर जो निगाह डाली
तो, शाम मुस्कुरा रही थी,
परिंदे आशियानों को लौट रहे थे
"और मैं 'रोते-रोते हँस पडी़' "..!!-