सुकून मिली उन्ही बातों में,
अक्सर जिससे डरा करते थे हम;
उन बातों से न जाने क्यों,
फिर भी आंखें हो गई नम;
खुशी के थे या गम के आंसू ,
ये तो अब तक न समझ पाएं हम;
पर सुकून तो मिली उसी बात से,
जिससे अक्सर डरा करते थे हम!!
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✌️✌️✌️✌️✌️✌️✌️✌️✌️✌️Consi... read more
और कितना झुकूं मैं,
और कितना सुनु मैं,
अपनी ज़िन्दगी के साथ साथ अपने आत्मसम्मान को
भी तुम्हारे नाम कर चुकी हूं
तुम्हें अब और क्या ही दूं मैं,
चोट हर बार तुम मुझे पहुंचाते हो,
अब कितने बार तुम्हे माफ करूं मैं,
गलती मेरी ना होने पर भी क्यों तुम्हें मनाऊं मैं,
हर बार खुद को ही सजा क्यूं सुनाऊं मैं,
तुमने भी साथ वचन मेरे साथ लिए थे,
तो अकेली ही क्यूं उन वचनों को निभाऊं मैं,
और कितना खुद को समझाऊं मैं,
कभी तुम भी तो समझने को कोशिश करो मुझे,
इतना ही न बस चाहूं मैं,
इतना ही न बस चाहूं मैं।।-
अंधेरा ज्यादा हो ना तो परछाई भी दिखाई नहीं देती,
तो फिर ज़िन्दगी क अंधेरे में कोई और कहा से नजर आएगा।।-
Mujhe tumse bat krni h,
Ye tumhe Kaise pta chal gya,
Maine to tumhari id last seen check krne k liye kholi thi,
Ki itne m tumhara hi message aa gya...-
बहुत जादा है,
पर बाहर की चुप्पी को,
ये ना तोड़ पाता है।
गुमसुम सी जिंदगी,
अब और भी बेजान हो गई है,
कहना चाहती हूं बहुत कुछ,
पर अब जबान ही सिल गई है।।
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No one can trust you the way you can trust yourself .So believe in yourself...
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Samne Hoti hun to apni kehlayi jati hun,
Par pta nhi kyun photos m nhi dekhlayi jati hun,
Standard match nhi krte hamare,
Kuch aise hi khayalat h na tumhare,
Apnepan ka thong kyu karte ho,
Jab apne sabd ke mayne nhi jante ho,
Kuch der dhong krke khushi dene ka dikhawa to aab mat hi kro,
Pehchan liya tumhe to bs aab ye drama band kro....-
कभी कभी अपने आप से ही रूठ हो जाती हूं,
अपनों की ही बातों से ही टूट जाती हूं,
पर फिर खुद ही अपने मन से लड़ झगड़ के खुद को मना लेती हूं,
पुरानी बातों को भूलकर दिल को हर बार सम्हाल लेती हूं,
अब थक चुकी हूं अपने आत्मासम्मान को तोड़ते तोड़ते,
लोगो की बेबुनियाद बातों को सुनते सुनते,
बस अब ले लिया है फैसला कि अपनी ही सुनूंगी ,
वादा किया अपने आप से की सारे फैसले आब खुद की करूंगी ।।-
रिश्ते और ज़िम्मेदारी के बादल में और घिरती जा रही हूं,
आज़ाद पंखों की तलाश में और गुम होती जा रही हूं,
सपने और सम्मान के भेद को लेकर खुद से ही ध्वंध
कर रही हूं,
पर अंततः समाज के डर से अपने हर सपने का अंत कर रही हूं,
सुहावने शुरुवात से संघर्षभरी जीवन का सफर करती जा रही हूं,
मैं धीरे धीरे खुद की पहचान भूलती जा रही हूं।।-
मैं हूं कौन ये भूलती जा रही हूं,
मैं धीरे धीरे खुद की पहचान खोती का रही हूं,
नाम यूं तो दिया गया है मुझे,
पर पुकारता नहीं कोई उस नाम से मुझे,
कभी किसी की बेटी तो कभी किसी की पत्नी कहलाती हूं,
खुद से खुद का नाम लेके अपने मन को सहलाती हूं,
दुलारी बिटिया से प्यारी मां का सफर करती जा रही हूं,
मैं धीरे धीरे खुद की पहचान खोती जा रही हूं।।-