I never had any longing for moon. I have only dreamt about fluffy, floating clouds since childhood.
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ब्राह्मण के आदर्श वाक्य:
|| लोक समस्ता सुखिनो भवन्तु || (पूर... read more
I usually leave the same people, places and things for whom I had been in love.
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कुछ शख़्स ऐसे भी हैं–
जो जिंदगी को नहीं जीते
बल्कि, जिंदगी उन्हें जीती हैं।-
मैं रोज़ तेरी गली से गुजरती हूं ऐ जिंदगी!
शायद किसी रोज़ तू मुझसे भी टकरा जाएं।
–सिम्पल राय।-
अरसों से धूल थी जिस गुलाबी चश्में पे,
उतारा तो इकतरफा इश्क़ समझ आया।
मैं रेत पे आयतें–ए–इश्क लिखती रही,
तू लहरों सा इन्हें हर बार मिटाता रहा।
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एक शाम पहचानी सी,
गुमसुम स्याह गुलाबी सी,
मेरे खामोश तन्हा कमरे में,
खुली किताबों के पन्नों से,
कोरे लाल खत चुराती है।
आहिस्ता से खोल के उसे,
इश्क की इत्र लुटाती हैं,
अनकहे लफ्ज़ सजाती हैं,
खत में सुर्ख गुलाब कलम से,
रागी कविता लिख जाती हैं।
जग को लगे मैं तन्हा शायर हूं,
ये राज़ दीवाना हैं की हर ,
तन्हा सांझों में मुझसे मिलने,
एक शाम पहचानी सी,
मेरे अकेले कमरे में आती हैं।
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निभाता हूं एहतराम से,
तर्ज़–ए–आशिक़ी यारों।
मैं परवाना जलता रहा,
वो शमा आबाद रही।-
तन्हाईयों में !!
जब मुस्कुराती हूं,
बीते लम्हों की,
जमा पूंजी से,
तब खर्च करती,
हूं बचपन !!
उम्र जवानी
चवन्नी सा मादूम,
ये बचपन !!
हर म्लान सी,
साँझों में खनकता,
हैं बचपन !!
लाखों नोटों से,
खरीद भी लूं जहां,
पर फिर भी,
दो अठन्नी से,
मिली कुल्फी की खुशी,
सा बचपन !!
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गांव पर था तब,
बंदिशों से आजादी !!
की तमन्ना थी।
शहर आया हूं तो,
आजादी से आजादी !!
की जुस्तजू हैंं।
–सिम्पल राय।💙
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