मैं कभी गुमान में रहता था
खुदगर्जी के मकान में रहता था
अपने मेरे सब ज़मीन वाले,
मैं खामखां आसमान में रहता था
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क्या कहूं ऐसा की उसे एतबार हो जाए !
मेरे जेसा ही उसको भी मुझसे प्यार हो जाए !
मैं जो उससे मिलके बदला बदला सा हूं,
उसका भी दिल मुझसे मिलने को बेकरार हो जाए !
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वो मिले तो उससे कहना
वक्त सारा उसे खोजने में लग गए !
ए चंचल हवा न जुल्फों से उलझना
उसकी एक लट को संवारने में हमें ज़माने लग गए !
एक शख्स से है सुकून सारा
सारी थकान उसकी बातें ले गए !
फिर न कभी नींद आई रातों को
बागों से उस के माली ले गए !
काश मुकम्मल मोहब्बत होती
मेरे ख़ाब सभी आंसुओं में बह गए !
आख़िरी ख़्वाहिश एक मुलाक़ात उससे
वैसे सारी ख्वाहिशें आजतक अधूरे रह गए !
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इस से पहले मैं कोई और था जैसे
तुम सा तो नहीं मैं मुझ सा भी ना था वैसे
क्यू, क्या, कैसे जिंदगी सोचा नहीं हूँ वैसे
सब को अच्छा लगूं इतना तो अच्छा नहीं हूँ वैसे
जो भी मुझे जानते है क्या वो ये जानते है,
अब मैं जैसे हूँ खुश तो नहीं हूँ वैसे
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है ख्वाहिश ए मौत अब है घुटन जिंदगी की
खुदसे में अंजान अब है जरूरत बंदगी की
कोई मदत करे, मेरे दर्द को कम करे,
सुकून तक ले जाए मुझको अब है चाहत आज़ादी की
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घर से दफ़्तर दफ़्तर से घर, बड़े जल्दी बदल रहे हैं ये दिन महीने में !
बस कुछ साल और ये जिंदगी भी कट जाएगी पैसे कमाने में !-
कमी है हर किसी को किसी न किसी की
है सिकायत हर किसी को किसी न किसी की
मुकमल तो एक वहम है जिंदगी की,
रह जाएगा मलाल हर किसी को किसी न किसी की
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बड़ा जल्द ही टूट गया गुरूर मेरा,
मुझे लगता था मैं सबसे अलग हूं !
जो लोग मुझे अच्छे लगते थे बहुत,
उन्होंने ही बताये मैं सबसे गलत हूं !-
काश ऐसा भी कोई ख्वाब होता !
मेरी अच्छाइयों का भी कोई सबाब होता !
कोई जब पूछे,है कौन तुम्हारा ?
मेरे पास भी कोई जवाब होता !
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मुझको भी संभल जाना था
इतना भी ना पागल बनना था
दुनिया की सही गलत तो भूल गया,
मगर सही में उसको भूल जाना था
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