शिवमयी दीवाली
हार्दिक शुभकामनाएं
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या तो आ जाइए....
या साँसों की क़ैद से रिहा कीजिए" read more
जय जय शम्भो त्रिलोचन दाता,
भव भय हर्ता सुखद सुखदाता।
नाहं मैं जानूँ जग की माया,
शिव ही सत्य, शिव ही छाया॥
शिव ही शून्य, शिव ही प्राण,
शिव ही धरती, शिव आकाश महान।
हैं हम तो तेरे अंश मृदुल,
शिव तू सागर, हम बिंदु अणुल॥
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इन्द्रजाल यादों का बुनता है हर शाम कोई,
धुंधली परतों में छुपा रहता है नाम कोई।
कभी ख़ुशबू बन के लहराता है कोई मंज़र,
कभी राख में सुलगता है पुराना पैग़ाम कोई।
कभी हँसी किरनें, कभी आँसुओं का समुंदर,
हर जज़्बे में तिलिस्म , हर दर्द का जाम कोई।
कभी ख़ुद को ही पहचान नहीं पाता इंसां,
जब यादों के जाल में बन जाए अंजान कोई।
छू लो तो ओझल, बुलाओ तो पास आ जाएँ,
इन्द्रजाल हैं ये— न समझ पाए इंसान कोई।-
दुख पाया है अगर तूने, तो की मेहनत होगी,
अश्रु से सींचकर फसल, सत्य नवनीत होगी।
भीतर डूबा जो कोई, जादू की छड़ी होगी,
दुख भी छू ले तो अमृत की वो लड़ी होगी।
आनंद तो स्वभाव है, सहज बयार होगी,
मुफ़्त मिलन की घटा, मिथ्या उपहार होगी।
तेरी नहीं, उसी की मर्ज़ी से हर रीत होगी,
उसकी हर चाल में भी कोई मूक प्रीत होगी।
आग में हाथ रखा, तो जलन अभी होगी,
प्रेम किया अगर सच्चा, तो रौशनी होगी।
छोड़ दे हिसाब अब, बस एक बात होगी,
भीतर ही जो आनंद है, वही प्रभात होगी।-
तेरे जलवे का कोई भी निशाँ सा नहीं,
चाँद भी देख लिया, पर जवाँ सा नहीं।
तेरी आँखों में देखा, तजल्ली का सफ़र,
जिसमें खो जाए फ़लक, आसमाँ सा नहीं।
तेरी ज़ुल्फ़ों की घटा जब लिपट जाती है,
रात ठहरी, मगर वो धुआँ सा नहीं।
तेरे लहजे में है ख़ुशबू दुआओं की सी,
बोलते हैं कई, पर वो बयाँ सा नहीं।
तेरे होठों की हँसी में है हयात-ए-नूर,
वक़्त ठहरा भी तो वो जहाँ सा नहीं।
तेरे पहलू में जो सुकून मिला ‘सिफ़र’,
वो न सज्दे में मिला, ऐसा गुमाँ सा नहीं।-
"मकतूब"
क़दम-क़दम पे वही फ़ैसला लिखा हुआ है,
हर इक सफ़र में वही रास्ता लिखा हुआ है।
हमारें हक़ में जो भी मक़ाम है बस वही,
नहीं किसी का नाम, नाम-ओ-निशाँ लिखा हुआ है।
न हम सवाल करें, न वो जवाब दे पाए,
क़लम उसी की, हर लफ़्ज़-ए-ज़बाँ लिखा हुआ है।
जो खो गया था वही फिर मिला तअल्लुक़ से,
ये इत्तिफ़ाक़ नहीं, सब यहाँ लिखा हुआ है।
हमारे इख़्तियार का भी वो ही हुक्मराँ है,
रज़ा में उसका ही इम्तिहाँ लिखा हुआ है।
‘सिफ़र’ न कर शिकायत ज़माने की ऐ फ़क़ीर,
तेरे मुक़द्दर में जो है आसमाँ वो लिखा हुआ है।-
सुन ऐ हमराह...
मैं तुझे अपनी रूह का सफ़र सुनाता हूँ,
जहाँ जो पाया... वही किसी मोड़ पर खो गया,
जो मिला, वो भी हक़ की तलाश में,
और जो छूटा... वो भी हक़ ही की मंज़िल था।
बचपन की मिट्टी में खेलते हुए,
मैंने ख़्वाबों के दीए जलाए,
कुछ ख़्वाब — अपने थे मगर बेगाने,
कुछ दर्द —..............
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रावन केवल दोष न धारे । ज्ञान-समुद्र तपो-आधारे ।।
शिव-भक्ति में डूबा मन था । पर अहंकार अग्नि गहन था ।।
तम जब तक उर में फलत है । वासन-मद निज पथ छलत है ।।
तब तक जीव रावन ही होई । राम बिना न चित्त सुधि होई ।।
राम न बाहर भू पर पावत । स्वच्छ हृदय में प्रभु स्वयं आवत ।।
अंतर से जब दोष निकाला । तब हरि-प्रकाशि दिया उजाला ।।
तप-बल रावन जग में गाया । पर निज अहंकार पतन लाया ।।
ज्ञान-संपदा भस्म समानि । जब न रहे प्रभु नाम की खानि ।।
दशहरा का मर्म यही गाया । अंतर-रावन दहन कराया ।।
दोष-दहन से जो सुख पावे । मोक्ष-पथ में रामहि पावे ।।
विद्या, तप, शिव-प्रेम संभालो । पर अहंकार हृदय न पालो ।।
रावन कथा यही समझावै । राम चुनो निज गति बन आवै ।।-