*क्यूँ हमको सुनाते हो जहन्नुम के फ़साने।*
*इस दौर में जीने की सज़ा कम तो नहीं।।*-
Mr Ahmed
जिस शेय पर वो उंगली रखदे उसको वो दिलवानी है।
उसकी खुशियां सबसे अव्वल सस्ता महँगा एक तरफ।-
वक़्त लम्हा लम्हा कर सासे नोचता रहा....
ज़िंदगी गुजर गई मैं कल कि सोचता रहा।।-
तुम दरख्तो को कहां आता है हिजरत करना
हम परिंदे है वतन छोड़ कर जा सकते है-
तेरे लगाए हुए मास्क लगाना चाहता हूँ
मेरी ख़्वाहिश देख मैं क्या चाहता हूँ-
हर शख़्स थका थका सा लगता है।
जिंदा है मगर मरा मरा सा लगता है।
ना शोर,साफ़ हवा और नींद भरपूर
फिर भी रातों का जगा सा लगता है।
वही सड़कें वही गलियां वही बाज़ार
पुराना शहर क्यों नया सा लगता है।
कुछ लोगों की लाचारीयां है ऐसी भी।
सूखी रोटी दे वह ख़ुदा सा लगता है।
ज़मी पर गुनाहों का बोझ बड़ा होगा
मौत का ख़ोफ़ उसकी सजा लगता है।-
ना गले मिले, ना गिला किया, ना अपनो से मुलाकात हुई
मैं ये किस तरह से मानू जो गुजर गयी वो ईद थी 🌙🌙-
मिल लेंगे हम, अपने ही गले में बाहें डाल कर....
ऐ भूले हुए शख़्स.... तुझे ईद मुबारक..-
हमे बेवफा कहते हो सुन लो।।
अम्मी कहती है जो कहता है वही होता है...-