हम रातों को उठ उठ कर जिस के लिए रोते हैं . . .
वो अपने शबीस्ताँ में आराम से सोते हैं. . .
किस बात का रोना है किस बात पर रोते हैं . . .
कश्ती के मुहाफिज़ ही कश्ती को डुबोतें हैं- 786 Shayari world
20 JAN 2019 AT 21:57
हम रातों को उठ उठ कर जिस के लिए रोते हैं . . .
वो अपने शबीस्ताँ में आराम से सोते हैं. . .
किस बात का रोना है किस बात पर रोते हैं . . .
कश्ती के मुहाफिज़ ही कश्ती को डुबोतें हैं- 786 Shayari world