कभी सोचा है तुम्हे मैं क्या मानता हूँ,या मुझे तुम कौन लगती हो??
अदा, लचक, चमक कातिलाना और पतली लंबी गर्दन सुराही सी, मुझे तुम मोर लगती हो।💖
गहरी झील सी, पैनी तीर सी, ठग सी शातिर काली बड़ी आंखें,मुझे तुम चोर लगती हो।💖
सख्त, कठोर, साहसी मुश्किलों में,और पिघलना वो अगले ही क्षण, मुझे तुम मोम लगती हो।💖
कभी अंधियारे का दीपक,कभी रात की लालिमा, तो कभी सुनेहरी भौर लगती हो।💖
शांत समंदर सी, कभी मस्त बवंडर सी,आस्मा पे राज करती घटा घनगोर लगती हो।💖
हस्ती, खिलखिलाती, ममता से भरी सुंदर अपसरा सी कभी,
कोमल इतनी कैसे?
(अरे कैसे?)
रेशमी डोर लगती हो।💖
इतराती हो नवाब लगती हो,नशीली शराब लगती हो।💖
जो देखा था अक्सर नींद में तुम वो हसीन ख़्वाब लगती हो।💖
।।।ज्यादा तो नही पता कौन हो तुम,या तुमसे रिश्ता क्या है।।।
पर देखकर तुम्हे दिल सुकून पाता है,आवाज़ से मन खिल जाता है,
सावन की पहली बारिश का शोर लगती हो।।💖💖
-