सियासत सी खेलती हैं नज़रें तुम्हारी प्रजा सा दिल मेरा आ गया बातों में तुम्हारी ख़ता किसकी है और किसको सजा दी जाए चुनावी वादों की तरह हो गयी है कहानी हमारी...
बात बे बात मुझसे झगड़कर दूर जा रहा है पास रहकर झगड़ लो तुम्हारा क्या जा रहा है अकेले कहां तक जाओगे इस सफ़र में मेरा हाथ पकड़ लो तुम्हारा क्या जा रहा है....
मंजिल के सफ़र में आज हम ख़ुदको नज़र आए हैं मुंतशिर थे पहले आज संभल पाए हैं अचानक बदली है चाल मैंने कुछ पुराने लोग जो नज़र आए हैं ख़ैर छोड़ो .... पुरानी बातों को अब तो हम ख़ुदसे आगे निकल आए है...