खुदा की रहमत कह लो... या फिर किसी फ़क़ीर की दुआ... हमारी किस्मत कह लो... या फिर हमारे यार कि दुआ... अब तक सिर्फ जी रहे थे ये कह लो... उड़ने लगे जब उनके आने का सबब हुआ...
मेरा जिस्म तेरे जिस्म से पूछता है कि तू मेरा है... फिर भी मेरा नहीं??? फिर तेरा तब्बसुम जिस्म में सिहरन देकर मेरी रूह को छूकर कहता है... अब बता तेरा है के नहीं???
मोहब्बत तो वो किस्सा है, जो हर दिल को लुभाता है... पर सच्ची मोहब्बत का किनरा तो तभी मिल पाता है... जब सच्चा दिल, सादगी के साथ मिल जाता है... वरना दिखावटी दिल वाला खिलौना तो हर बाजार बिकता दिख जाता है...
ऐ खुदा तुझसे शिकायत करूँ भी तो क्या करूँ... मेरी रूह से निकली हर नज़्म में तू जो बसा है... जी रहा हूँ कुछ उलझनों के जवाब की जुस्तुजू में... हो सके तो बता दे, क्यों इस आडम्बर में फसा हूँ...