राजनीति मेरी उस ex के जैसी हो गई है,
जिसको मैं जानता हूं दगा दे रही है.
मगर sex भी सिर्फ वहीं दे रही hai,
तो सांप के मुँह में नेवले जैसी,
ना उगलते बन रही है, ना निगलते.-
क्या कोई रोक सका है,
गुज़रा हुआ कल?
क्या कोई रोक सका है,
बहते झरने का जल?
जिसने जाना था,
वो तो जाएगा ही.
चाहे तू कितना भी,
विलाप कर.
पतझड़ में पत्ते,
गिर ही जाते हैं.
चाहे माली कितना भी,
जी जान से सिंचा कर.
पर उन गिरे पत्तों को,
कोई भला पेड़ से चिपकाता है?
ना ही पेड़ उन पत्तों से,
मोह लगाता है.
कुछ गुज़रते मौसम,
यूँही निकल जाते है.
वसंत मे नव कोंपल, पल्लव,
वृक्ष पर आते हैं.
तू जान के ये मौसम,
पतझड़ का आया है.
बिछड़ने, और टूटने का,
सिलसिला शुरू हुआ है.
कर प्रतीक्षा तेरे वसंत की.-
क्यूँ करू बयां मैं,
वो अधूरे इश्क की दास्तां.
और भी तो फ़साने है,
सुनाने के लिए.
क्यूँ रहूं तन्हा मैं,
कुछ अपने जो चले गए.
और भी तो गैर हैं,
अपने बनाने के लिए.
गिर तो गया मैं,
खाकर ठोकरें.
क्यूँ गिरा रहूँ जब,
मेरे हाथ हैं,
खुद को उठाने के लिए.-
कहते हैं कि,
जो मुकम्मल नहीं हुआ,
वही सच्चा इश्क है.
ऐसी अधूरी दास्तानों से,
भरा पड़ा है जीवन मेरा.
पर एकतरफ़ा इश्क,
कभी पहुंचा है मुकाम तक?
दरिया में झुलस तो गया,
पार नहीं पा सका लेकिन.
मैं 4 कदम आगे बढ़ता,
वो फासला बढ़ा देती.
और कहती,
तुम्हारे इश्क में जुनून नहीं है.
काश उसने वो झुलसना देखा होता.
पर वॊ शायद देखना ही नहीं चाहती थी.
नहीं तो मेरी दर्द भरी आह ने,
पत्थर भी पिघला दिए थे.-
मैं भले ही अब,
अकेला ही तड़पूं.
अब तुम मुझे,
नहीं चाहिए.
चाहे कितनी ही लंबी,
आहें भरूं अकेले.
अब तुम मुझे,
नहीं चाहिए.
तन्हा रातें,
तन्हा दिन कटें.
अब तुम नहीं,
चाहिए मुझे.
चुपचाप अकेला,
घुट लूँगा.
मगर,
तेरी जिल्लत नहीं चाहिए मुझे.-
सम्भलते संभलते,
फिर अचानक,
बहकने लगता है,
चंचल चितवन.
जानता हूँ,
वो बेवफ़ा है.
फिर उसे,
चाहने लगता हूँ.
जानता हूँ,
उसके लिए,
मैं बस,
जिस्म की प्यास भर था.
फिर कभी,
उस प्याले को,
भरना चाहता हूँ.
आगाज़ तो,
दोनों का,
उसी प्यास से,
हुआ था.
बस मैं ही बहक बैठा,
मुहब्बत की ओर.
बेख़बर इससे की,
उस प्याले की प्यास,
कभी बुझ नहीं सकती.
मुझसे कल,
किसी और से आज और कल.-
नज़रिया बदलिए जनाब,
फिर ग्लास आधा भरा नजर आएगा.
जिसके जाने का ग़म खाए जा रहा है,
उसके ना होने से सुकून मिलेगा.
सोचिए, मेरे साथ ही क्यों?
क्या बिगाड़ा था मैंने?
तो,
देख ना पाओगे कि,
सस्ते में छूट गए हो!
कितना खो दिया,
कितना रो दिया,
में ही लगे रहे.
तो,
क्या रह गया,
जान कर हंसोगे कब?
और जब घेर ले तुम्हें,
हताशा, निराशा और उदासी.
तो,
आनंद की बात याद करना,
ज़िन्दगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए.-
वो मेरे इश्क को जाने क्यूँ,
यूँही, खैरात समझ बैठी.
मेरी मोहब्बत भरी निगाहों को,
जाने क्या समझ बैठी?
मैं सुनता रहा उसकी बेरूखी,
वो मुझे, बेग़ैरत समझ बैठी.
जो उठ कर चला पड़ा फिर मैं,
मुझे बेवफ़ा बना बैठी.
उसे गिनाए उसके सितम,
तो वो आंसूं बहा बैठी.
कहा मैं अब नहीं रुकता,
चला जाता हूँ, तू खुश रहना.
वो भरकर बाहों में मुझको,
अपना सब बना बैठी.
ये कसमें और वादे तो,
सभी खोटे थे, झूठे थे.
जुबां पर नाम था मेरा,
दिल कहीं और लगा बैठी.
दगा देनी थी, दी उसने,
मगर मुझको वो आँखों के,
समंदर मे डूबा बैठी.-
मेरे प्यारे बिस्तर,
1 तुम्हीं तो हो मेरी हर ग़मगीन रात के साथी.
तुम पर ही तो मैंने, टूटे सपनों को देखा था,
फिर उनके टूटने पर जो दर्द भरा था,
सब आंसुओ के साथ, तुम्हीं पर उड़ेल दिया था मैंने.
स्कूल ना जाने को तुम्हीं से लिपट कर तो,
पड़ा रहता था मैं.
कई रातें अगले दिन के Exam से डर कर,
सुगबुगाहट मे भी तुम्हीं पर काटी थी.
कई रातें प्रियतमा के बिछोह में,
तुम्हीं पर जग कर काटी है मैंने.
पहली बार प्रियतमा के सुदृढ़ शरीर का,
वो रोमांचित करने वाला आलिंगन, तुम्हीं पर तो किया था.
1 विस्मित करने वाली बात तो यह भी है,
मैंने अपने सब दर्द, सारी खुशी,
तुमसे ही तो बांटी हैं.
शायद, तुम मेरे सबसे करीबी मित्र हो.-