Siddharth Pathak   (© सिद्धार्थ)
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Joined 3 February 2018


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20 JUL 2021 AT 0:33

खालीपन दिल का अश्कों से,
कैसे कोई भर पायेगा।
यादों को छिपाना मुश्किल हैं,
हर आंसू याद दिलायेगा।।

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20 JUL 2021 AT 0:18

जब लफ्जों के मायने सिमटने लगें।
अपने भी परायों में वँटने लगें ।।
जब कदम डगमगाने लगे।
और जीभ थरथराने लगे ।।
तब ऑखों के मुहाने डोलते हैं।
आंसू भी बोलते हैं, आंसू भी बोलते हैं।।

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25 JAN 2021 AT 20:09

जब अपना कोई छूटा हो
दिल इस दुनिया से रूठा हो
दिल में तन्हाई छाती है
आँखें हर पल भर आती हैं
हर रोज अंधेरा होता है
दिल तन्हाई में रोता है
किसको ये व्यथा बतायें हम
किसको अब गले लगायें हम
अक्सर ही एैसा होता है
आँखें तो अक्सर रोती हैं
तकलीफ तो होती है

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25 JAN 2021 AT 19:56

डूबता सा जा रहा हूं मैं यहां
क्या आसरा मुझको कभी मिल पायेगा
रोज खिलता हूँ कडी इस धूप में
दिल मेरा हर रोज ही मुरझा रहा
वाँट कर खुशियॉ सजा दूँ ये जहाँ
दर्द ही अपने तो हिस्से आ रहा
ये घुटन मुझमें है बडती जा रही
दम मेरा हर रोज घुटता जा रहा
जब कोई समझे नहीं तो क्या करूँ
दर्द अपना है समेटे जा रहा

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16 JAN 2021 AT 12:27

जिन आंखों में स्वप्न हो तेरे
जिन आंखों में प्यार भरा हो
उन आंखों को मत रोने दो
ह्रदय वेदना से भर जाए
चंचल मन निष्ठुर हो जाए
किंचित ऐसा मत होने दो

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7 NOV 2020 AT 7:44

इश्क की लाखों खताएँ कर रहे थे हम यहां।
वो हमें बस बेरुखी तोहफे में देते जा रहे ।।
खाक समझेगा हमारे दर्द को , एहसास को।
बेरुखी से जिसकी,अपने लफ्ज़ रोते जा रहे।।

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5 NOV 2020 AT 17:48

जिनके लिए सुबह से शाम जी रहे थे हम।
उनको हमारी मौत की परवाह तक नहीं ।।

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12 JUN 2020 AT 21:03

तुम्हारा हमसफ़र होना मेरी अन्धी तमन्ना थी।
मगर दस्तूरे दुनियी है ,जिसे चाहो नही मिलता।।

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10 MAY 2020 AT 10:45

धूप से तपता रहा दुनिया की मैं इस भीड़ में।
मां तेरे आंचल की छाया,मिल गई तो छांव है।।
लाख तूफॉ मुश्किलों के घेर ले इस राह में ।
डर नहीं मुझको कि जब तक मां तू मेरी नाव है।।
शहर बस्ती घूम आया,चैन फिर भी ना मिला।
अपने आंचल में छुपा ले,तू सुकूं का गांव है ।।
धूप से तपता रहा दुनिया की मैं इस भीड़ में।
मां तेरे आंचल की छाया मिल गई तो छांव है।।

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7 APR 2020 AT 9:46

बड़े तहजीब की तरजीह के हामिद बने थे हम।
आज अल्फाज में दौरे अदब बिल्कुल दफन सा है।।

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