अब और नहीँ बटूंगा मैं।
हाँ, अब और नही बटूंगा मैं,
बदलाव यूँ तो कई हुए, आजाद भारत के नाम पे,
पर मिट न सका अत्याचार,
धर्म, जाती, के नाम पे,
तुम कहते हो वो मुस्लिम, वो हिन्दू
सिख ,ईसाई हैं,
क्या खूब धूल इंसानियत की नजरों मे
तुमने ये उड़ाई है।
मोहल्ले में गूँजी हैं मंदिरों की घंटियां,
और मस्जिदों की अज़ान भी,
मुझमें हैं हरिजन
मुझमे है गांधी और आंबेडकर की परछाई भी।
माँगा न हमने मंदिर था न मस्जिद की जिज्ञासा कभी,
ये तो तुमारी राजनीति की घिनोनी चाल थी,
किरण पर अब एकता की ,
जिसको बादल बन अड़े हो तुम,
वह अब सवेरा मांगती,
हर सव जिसको चौराहे पर तुमने लाठियो
से है मारा अभी, अब इंसाफ है मांगती।
बस बहुत तोड़ लिया तुम्हें हमें,
पर, अब और नहीँ बटूंगा मैं।
हाँ, अब और नहीँ बटूंगा मैं।
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