Siddharth Chaturvedi   (_siddhu--)
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Joined 17 October 2019


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1 JUL 2022 AT 1:15

आला धागों से ये पिरोया है,
दिल तेरे आगे ही तो रोया है,
कुछ तो ख्याल कर लेते तुम,
मर गया,जो लगता सोया है।

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9 FEB 2022 AT 12:10

नज़ारा हुस्न का तुम क्या ही जानो गालिब बात बस दिलों की जो करते हो,
नज़ारे सारे दरकिनार करके आदावत को ही मोहब्बत की अदालत जो कहते हो,
वो तो सजते है इतना बेसबरी से कि तारीफ करे उनके नूर का हर पहर जितना संभव हो,
गुलाब की खूबसूरती भी तो देखो ए गालिब क्या ही तुम बस खूबू में ही मशगूल रहते हो।— % &

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6 FEB 2022 AT 13:50

The person is infront
Wants to bind them through
Hearts and soul just patchup
Together and in the snap
Of fingers curled entangled
As the body meets the body
And soul connects to soul
Love has never ending affection,
And together close enough to
Feel every bit of world,
TOGETHER!!— % &

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30 JAN 2022 AT 4:50

Let the world think that.....
They are implying their views on you,
But always post that......
What you have learnt from the world.— % &

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18 JAN 2022 AT 1:40

too Importance kills humanity

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11 JAN 2022 AT 17:31

I begged:-
Ohh Lord! I wish you for a special device,
Which can increase my happiness twice,
I will appreciate you and would be nice,
I am trying my luck and throwing the DICE.

God replied:-
To have happiness you don't need dice,
I will not make it lengthy and be consise,
Bow your head down and always be wise,
Under you parents feet is your PARADISE!!

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11 JAN 2022 AT 16:02

हाय! लिखना कुछ और था क्या लिख दिया, मेरी कलम से,
आज मुद्दातों बाद फिर से लिख दिया तेरा नाम, मेरी कलम से,
शायद प्यार का विषय पे लिखना होगा मुझे, मेरी कलम से,
शायद कोशिश जज़्बात–ए–शिद्दत लिख गया, मेरी कलम से,
शायद तुझे भुलाने में तुझे याद करते रहता हु मै,मेरी कलम से,
फिर खिल उठे चमन, छा गया हाल–ए–दिल ,मेरी कलम से,
ना चाहते हुए भी हो गई गुस्ताखी एक बार फिर,मेरी कलम से,
ऐ!मुकद्दर जब लिखूं तो यही क्यों लिखवाता है तू,मेरी कलम से,
अब जो लिखा वो मिटा नहीं सकता स्थाई हो गया,मेरी कलम से,
पृष्ठ कम पड़ने लग गए जब तुझे लिखने लगा मैं, मेरी कलम से।

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10 JAN 2022 AT 22:13

इतने मिन्नतों मिलते थे तुमसे वो सब बस मुलाकात है क्या?

बयान हुई जो अपने बीच इतनी सारी, वो सारी बस बात है क्या?

तुम चाहते हो, तो आ क्यों नहीं जाते, इतने तंग हालात हैं क्या?

मोहब्बत मुझसे ही है तो मेरी मानते क्यू नही,इतने उलझे जज़्बात हैं क्या?

खालिश ऐसे कैसे होने लगी तुम्हे, मेरे शिवा तुम्हारा कोई नात है क्या?

तू मेरी कितनी है मैं कैसे बता दू तुझे, तेरे बिना मेरी कोई औकात है क्या?

तू अगर मेरी शायरी में न हो तो क्या बात! क्या बात! क्या बात है क्या?

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9 JAN 2022 AT 21:05

मुद्दा बातों का था ही नहीं गालिब,
वो तो मुरीद ही किसी और के थे,
बहाने थी वो बातें सारी जो हुई,
साथ तो थे पर वो मेरे कभी नही थे।
☺️☺️😇

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9 JAN 2022 AT 11:49

कुबूल हूं या है एतबार वो सब लाज़मी है,
अगर मोहब्बत नहीं तो इकरार लाज़मी है,
लाजमी है वो जवाब जो मेरे मन का न हो,
तुम्हारा मन में कुछ और होना लाज़मी है।

लाज़मी है तेरा दर्द–ए–जिल्लत तो गुनहगार लाज़मी है,
टूटे जो हम पूरी तरह तो मेरे नाम की मज़ार लाज़मी है,
हद्द से ज्यादा हुई मोहब्बत तो दिल पे वार लाज़मी है,
तन्हा हो जाए मोहब्बत तो एक तरफा प्यार लाज़मी है।

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