siddharth bhardwaj  
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Joined 16 June 2019


Joined 16 June 2019
25 JUN 2023 AT 14:43

चाँद दिखा कभी करीब से नहीं,
कैसे कहें के चाँद जैसी हो तुम,
के चाँद तुम जैसा।।

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27 SEP 2022 AT 17:39

दिन को हँसी रात को नम रखते हैं,
चेहरों की परत सिराहनों के संग रखते हैं।
जाने कब कौन पूछले हाल-ए-दिल,
जुबां पर अब ठीक तैयार रखते हैं।।

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10 AUG 2022 AT 21:20


घर छोडो तो श्याम मिले,
मोह छोडो सो राम,
कह गए कई विद्वान।

मन मेरो माने न,
भजे एक ही राग,
सीता बिन न राम मिलें,
राधा बिन कहा मिले हैं घनश्याम,
माया बिन अधुरा जीवन,
हैं जिसके प्रतीक,उमा संग महाकाल,
जो जान ले यह बात,वो कहा बूझे हैं विद्वान।।


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6 AUG 2022 AT 22:44

कई मंज़िलों से सुहाना,
सफर तय कर रहे हैं।

मंज़िलों से लगाव नहीं,
सफर से नाता जोड़ रहे हैं।

मंज़िलों की तलाश में,
यूँ ही भटकते नहीं,
सफर को हम जी रहे हैं।

सफर को चाह रहे हैं इस कदर,
के मंज़िलों पर वो हमें खुद छोड़े जा रहे हैं।

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6 AUG 2022 AT 22:27

बरसात में अब वो बात कहाँ।
जीवन देही वो राग कहाँ।।
इस की शीतलता जाने कहाँ।
स्वर इसका मंद हुआ,
सुर जाने कहा पर लुप्त हुआ।।
बैर धरा से कब इसका हुआ,
जाने कब इसका ये रूप बना।

हर तरफ सैलाब उमड़े जा रहा,
बरसात का पानी यूँ भरे जा रहा,
सबको फिक्र यातायात की,
तो सब पक्का हुए जा रहा।
जल धरा में समाए कहा,
नालों में ही बस घुलता जाए जहाँ,
फिर यह कटाक्ष आए है,
के
बरसात में अब वो बात कहाँ,
जीवन देही वो राग कहाँ ।।


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3 AUG 2022 AT 11:59

खुशियों का साथ छूट गया,
मनोबल भी यूँ टूट गया।
किस्मत,ऐसे मोड़ पर लाई,
जीवन का मोह छूट गया।।

ऐ किस्मत तुझसे हम लड़ जाएँगे,
अब सैलाब लाएँगे,मन को ये समझाएंगे।
कुछ ऐसा अब कर जाएँगे,
के जीवन सफल बनाएँगे।।

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1 AUG 2022 AT 10:23

बरसात के दिन निराले,
पेड़-पौधों को झूमाने,
मोरों को नचाने, पक्षियों को चहकाने।
पवन को स्वच्छता दिलाने,
आए श्रावण के वो दिन निराले,
प्यास धरा की बुझाने।।

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22 JUL 2022 AT 21:11

गर्मी की यादें, वो चिलचिलाती धूप में मम्मी से छुपकर दोस्तों के साथ के अफसाने, छुपते छुपाते नहर में दोस्तों के संग गोते लगाने, पसीने में लत-पत खेल को गले लगाने के वो शोक पुराने, माँ के हाथों बने नींबू पानी के चटकारे, आइसक्रीम के लिए 2 रुपये मांगने के बहाने, खासतौर पर दिन कई छुट्टियों के इंतजार में निकालने, सुबह-शाम नहाने के आनंद वो निराले, भुला नहीं पाते अफसाने वो मतवाले, याद आते हैं गर्मियों के वो दिन पुराने, याद आते हैं वो दिन पुराने।

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16 JUL 2022 AT 21:43

जीवन में बड़ी दुविधा है,
समझ कुछ आए न, जीना है के मरना है।
मानो एक ओर गुरु तो एक ओर चेला है,
बिच मझधार असमंजस का घेरा है।
ये और कुछ नहीं बस सब किस्मत का खेला है।

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3 JUL 2022 AT 21:23

साथ को तेरे तरस रहे हैं, जिंदगी के उतार-चढ़ावों से डर रहे हैं।
साथ जो तेरा मिल जाए तो ये भवर भी तर सकते हैं।।

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