Siddhant Shekhar Singh  
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Joined 25 August 2017


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Joined 25 August 2017
8 MAR 2019 AT 23:11

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29 JUN 2018 AT 7:55

मुझे अब पत्थरों वाले भगवान में विश्वास बिल्कुल नहीं रहा है
पर मेरे कमरे में आज भी एक छोटी सी गणेश जी की मूर्ति रखी हुई है
जिसे लिया था मैंने रामेश्वरम के बड़े बाजार से जब वहां गया था घूमने।

मम्मी बड़ी खुश हुई थी मुझे वो मूर्ति खरीदती देखकर
उन्होंने सोचा कि बाहर मेरी रक्षा को उनके भगवान जो साथ रहेंगे
पर मुझे ये पता था कि भगवान रहें ना रहें पर तुम्हारी यादें जरूर साथ रहेंगी
देखो अब तो अपना लो मुझे जो मैं बिल्कुल तुम्हारे जैसा हो गया हूँ
हाँ मुझे भी अब केवल गन्नु जी ही पसंद हैं।।

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4 JUN 2018 AT 9:52

वो आख़िरी मुलाक़ात आज भी याद है मुझे
जो आंखों ही आंखों में हुई थी उस शाम
तुम्हारी हंसती आँखें शायद कह रही थी 'अच्छा लगा'
वो जो मैंने भेजा था संदेश में वर्ड फाइल पे लिखा खत।

वैसे मुझे पता नहीं था कि जान तुम बिना मिले बतियाये ही कालेज से चली जाओगी
मुझे तो लगा कि नौकरी पा चुके लोगों के ट्रेनिंग वाले फर्जी चोचले तक रूकोगी तो तुमसे मिल लूंगा
खैर जो बीत गया वो छोड़ो पर जल्द ही तुमसे मिलने आउंगा मैं
बस मिलेंगे तो मुझे बैडमिंटन सिखाने का अपना वादा याद रखना।।

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2 SEP 2019 AT 22:42

भारी पत्थर दिल पर रखकर रहने वाले
मिसरा बाहर बहते बहते रो देते हैं

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25 AUG 2019 AT 14:39

एक तड़प के पागलपन में ऐठे...कितने!
घुटना माथे लगते लगते रो देते हैं

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23 AUG 2019 AT 17:36

आँखों में देखना सीख जाओ तुम
अब मदद को और भला कहाँ लिखें!

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4 AUG 2019 AT 21:35

मुझे हसाया, मेरा दर्द भुलाया, मुझे खुद पे भरोसा करना सिखाया
ओ साथी, ओ रे हमदम, ओ जानेमन,किताबों तुम्हें दोस्ती हो मुबारक

खुशी का मुझको याद नहीं पर कभी दर्द में उसने मेरा साथ न छोड़ा
ओ री आँखें,तुझसे अब तक बहे जितने आँसूं, उन्हें दोस्ती हो मुबारक

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27 JUL 2019 AT 21:42

वो चेहरे सूख गए किसी माली बिना
फूलों के जड़ बंजर थे, दिल में नमीं थी

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25 JUL 2019 AT 0:49

ऐसा हुए इक अरसा बीत गया कि होंठ-आँख इक साथ हंसें
क्या सच में बड़की माई एक परी कुएं से इक दिन आएगी!

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19 JUL 2019 AT 1:02

कुछ किताब से इतना ज्यादा जुड़ जाते हैं
दर्द किसी का पढ़ते पढ़ते रो देते हैं

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