Siddhant Khare   (Soulfull writer)
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Cool and awesome.
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Insta:- sarcastic_khare_ji
Joined 23 October 2017


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2 AUG 2023 AT 1:33

ताकता रहू तुमको
अपने फ़ोन की स्क्रीन पर
ना भरे मन चाहे देखू कितनी ही पहर तक।
एक आदत सी हो तुम।

तस्वीरों में ही सही
मेरा सुकून हो तुम |

बस है एक अनजानी आस सी
बस है तेरे हाथ का वो अहसास भी
अब यादों के सहारे रह गये है
बस अब खोये हुए किस्से हो गये है।

पर गिला नहीं किसी बात का,
अब एक तरफ़ा कश्ती का हिस्सा हो चला हूँ।

अब तस्वीर ही सही ,तो क्या हुआ ,
इन्ही से बातें कर लेता हूँ ।
नोक झोक किस्से कहानी ,
अब इन्ही को सुना देता हूँ।

बस एक तस्वीर नहीं ,
पूरी किताब हो तुम।

तस्वीरों में ही सही मेरे पास हो तुम।

-


2 AUG 2023 AT 1:22

तस्वीरों में ही सही,
सुकून तो हो न तुम मेरी।
पास ना सही ,
तस्वीरों में तो तुम पास हो ना मेरी।

असल में बातें ना हो ,
तो कोई शिकवा नहीं।
दूर तू कितना भी हो ,
पर ये दूरी कुछ भी नहीं।

मेरा ड्राप बॉक्स तुम ,
मेरे मूड का स्विच बॉक्स तुम।
मेरे अकेलेपन का सहारा हो ना ,

तस्वीरों में ही सही ,
मेरा सुकून तो तुम हो ना।

खोया हुआ इस दुनिया का हिस्सा हूँ,
भीड़ भाड़ का एक किस्सा हूँ।
पर इस हिस्से किस्से के बीच का बहाना हो तुम ,
तस्वीरों में ही सही मेरा ठीखाना हो तुम।

-


2 AUG 2023 AT 1:09

तस्वीर

-


7 FEB 2023 AT 15:38

सूख गए वह गुलाब भी
जो मैंने तेरे लिए खत में रखे।
पहुंचे ना मेरे अल्फाज भी
जो मैंने तेरे लिए खत में लिखे।।

लिखी मैंने ख्वाहिशें थी
जो सिर्फ सपना रह गई।
आई ना वो घड़ी कभी
जो तुमको मेरा अपना कहती।।

दिन गए ,रात बीती
बीते मेरे ख्वाब सभी।
सपनों में ना आए तुम
और हकीकत कुछ और बनी।।

लिखी पत्र मैं बातें सभी
जो कुछ तुमको भाता है।
छोडी इत्र की फुहार थी
जो मन तेरा मोह जाता है।।

पर रखा संजोकर था इस खत को
शुभ घड़ी के इंतजार में।
पर आई न वह घड़ी कभी
और रह गई यह फिसाना मझधार में।।

-


7 FEB 2023 AT 15:34

फिसाना

-


15 JUL 2022 AT 0:08

बैठा मैं अकेला संसार से अलग,
कई विचार मेरे अंतर्मन को चुनौती दे रहे थे।
तभी चंद लम्हों के लिए वह मेरे पास आई,
और खामोशी की सौगात लाई।।।।।
इन खामोशीयो मैं एक धुन सुनाई देती है,
यह कुछ जानी पहचानी सी प्रतीत होती हैं,
पर याद नहीं आता कि यह वही धुन है या नहीं ,
यह बता पाना मुश्किल है।
इन्हीं खामोशियों के तले,
मेरे मन के विचार उफान ले लेते हैं।
सही-गलत
सत्य-असत्य
वर्तमान-भविष्य
ऐसे कई सवाल बवाल करते हैं
उस उबलते हुए सकोरे में,
एक ठंडी हवा का झोंका मानो शांति का पत्र लेकर आता है।
और सकोरा कुछ समय के लिए अपने आप को समेट लेता है।
यहीं खामोशियां कई बार मुझे कुछ याद दिला देती हैं,
वह जीवन में मचे शोर से लड़ती हैं,
और लड़ते लड़ते कहीं ना कहीं पराजय की प्राप्ति कर जाती है।
और सकोरे का ऊबाल मानो फिर सर पर जोर पकड़ लेता है।।

ये खामोशी ही कभी सुकून देती है,
और,
ये ही कभी कई सवालों के जवाब भी।
लेकिन,
इस शोर भरे जीवन में कहां मिलती है?
ये
"खामोशी"

-


25 APR 2022 AT 15:25

खुद में खुद से खो गया हूँ।
यूँ अधूरा सा ख्वाब हो गया हूँ।।
ना जाने ये राहे कहाँ ले जा रही हैं।
बस बेज़बान जिन्दा लाश हो गया हूँ।।

झील किनारे बैठे-बैठे,
लहरों को बस ताक रहा हूँ।।
हवा की आवाज से बस,
बार-बार जाग रहा हूँ।।

नींद है पर आंखों में नहीं,
दिल है पर जिस्म मैं नहीं।।
अधूरी पहेली का हिस्सा हो गया हूँ,
बस बेज़बान जिन्दा लाश हो गया हूँ।।

जी रहा हूँ,पर अधूरा सा,
हंस रहा हूँ,पर दिल से नहीं।।
सफर तो जारी है इस जिंदगी का,
पर भीड़ में कहीं अकेला खो गया हूं।।

इंतजार अब नहीं किसी का,
ना ही किसी से करार है।।
हूँ अकेला बेजुबान सा इस दुनिया में,
बस अपने वक्त का इंतजार है।।

-


21 SEP 2021 AT 18:22

सच और झूठ में जहां,
फर्क हमें ना हो पाऐ।
झूठ हमेशा बोल बोल कर,
फरेबी ही जीत जाए।

देखें खेल तमाशा सरा,
इस दुनिया के तमाशबीन।
हम एक कोने में बैठे-बैठे बस,
अपने दिल को बहलाऐ।

दीया दिलासा दिल को अपने,
यह भी बहुत कुछ सोचता है।
दुनिया की रीत ही है ऐसी,
इन सब से किसको बचना है।

सांसे ले रहे कहीं पर,
जो पहले कभी ना उलझे थे।
बिन बताएं बिखर गए,
कुछ रिश्ते ही ऐसे थे।

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21 SEP 2021 AT 18:17

सांसे ले रहे कहीं पर,
जो पहले बिन कहे समझते थे।
बिन मतलब से मतलब तक,
ऐसे कुछ रिश्ते कभी न बिखरे थे।

मीठास से कड़वाहट तक,
जो बिना बात भी समझे थे।
आज देख लो उनको तुम सब,
आंखें मीच के बैठे थे।

छोटी-छोटी बातों को जो,
हंसी मजाक कहते थे।
वही बात आज करे तो,
मुंह फुलाए बैठे थे।

देखो उन्हें कभी तो,
मन भी विचलित हो जाता है।
जो लोग कभी साथ थे जहां,
आज वो रास्ता भी उन्हें खोजता है।

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26 AUG 2021 AT 20:24

पड़ी एक कोने में बेबस सी
वह सिसक सिसक के रोई थी
सोच रही थी किसके हाथ लगी
यू बेबस ना मैं कभी हुई थी।

मलंग तो मलंग था
दो पल का ही दुखी था
फर्क पड़ा ना रत्ति भर भी
नापा अपना रास्ता

पड़े पड़े बेबसा सा फीता
बस देखता रहा सारा तमाशा

अब सोचे क्या फायदा
जब हाथ में थी जो किस्मत तेरी

थमांई थी जो डोर अपनी
बिन सोचे मलंग के हाथ में

तब काहे ना सोचा।
तब काहे ना सोचा।।
तब काहे ना सोचा।।।

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