बहुत हुआ सम्मान तुम्हारा,
अब देखो परिणाम तुम्हारा.!

हद से आगे जा पहुंचा है,
ये झूठा अभिमान तुम्हारा.!

डरते हो तुम दर्पण से अब,
देख के खुद प्रतिमान तुम्हारा!

झूठ की लिप्सा में उलझे हो,
सत्य से है संग्राम तुम्हारा..!

धर्म की मानो बात नहीं तो,
मिट जाएगा नाम तुम्हारा..!

स्वतंत्र कहे सुन लो नेता जी,
सेवा हो अभियान तुम्हारा..!

सिद्धार्थ मिश्र

- स्वतंत्र