मेरे आसुओ को बिल्कुल भी तमीज़ नही की वो निकले कब ? कोई गुदगुदी भी करता है तो बाहर आ जाते हैं...कमबख्त अब तो ये...मेरे कंधो की जुम्बिश से तय करते हैं बाहर आना बुद्धू है सब मेरी तरह ये भी धोखे में आ जाते हैं।
जब अँधेरा गहरा गया तो सोचना पड़ा रोशनी को की मेरी एक छोटी से किरण भी जब किसी को राह दिखा सकती है कितने मुश्किल ए हालातो से गुजरा होगा कोई जब जाके मुझ तक पहुंचा होगा, गहराने दो इन अँधेरो को ,कितने गहरा सकते हैं मुझ से स्पर्श पाकर इनका अस्तित्व बिखर जाता है, और मिलता है आदमी को एक नया रास्ता ,नई मंज़िल और जिंदगी जीने की राह