हर कर्म;
और
कर्म-फल
तुमसे बस इतना पूछेगा
"कुछ मिला?"
और अगर तुम्हारा उत्तर
"नहीं" रहा
तो बस एक और प्रश्न आएगा
"फिर खुद का जीवन त्रासदी क्यों कर लिया?"
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fickle ;-/
Nyctophilia (-_-;)
प्रिय,
"दुःख हमें ढूंढ़ ही लेते हैं"
पर तुम देखना,
एक रोज़_
हम भी ढूंढ़ ही लेंगे
विलुप्त होते सुखों का पता!
ठीक वैसे_
जैसे ढूंढ़ लेती हैं,
बाबजूद तेज़ बारिश के_
कहीं टूटे मकानों में
गिलहरियां_
अपने घरोंदे;
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ये बाद में समझ आता है
किसी का साथ चलना
किसी का साथ होना_
दोनों अलग बातें हैं।
मालूम है मुझे भी उम्र भर
कोई साथ नहीं रहता।
पर उम्र भर किसी की
कमी जरूर खलती है।
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औरों की तरह
मैं ईश्वर से तृप्ति नहीं मांग रहा था
और ना ही झोली भर लाए
पापों को गंगा में
उड़ेल देना चाह रहा था!
यद्यपि मैं
अपने जीवन के
पुण्यों को न्योक्षावर कर
बदले में
तुम्हारे साथ तुम्हारे शहर में (बनारस में)
एक शाम बिताना चाह रहा था।
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प्रेम में कोई बन्धन नहीं,
कोई शर्त नहीं_
पर इतना विश्वास होना
आवश्यक है। कि,
जो मेरे पूछने पर
सामने से हर बार
मुकर जाता है।
वह 'लड़का' मेरे बाद भी
मुझे ही चाहेगा।
सिर्फ़ मुझे ही!
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मैं अक्सर
निरुत्तर हो जाता हूं।
तुम पूछती हो ना
मुझसे कितना प्रेम है तुम्हें?
सम्भव था मैं देता
इसका जबाव भी तुम्हें।
परंतु_
मेरी जान!
प्रकृति ने
अभी तक नहीं सौंपे
जीव के हाथ__
"प्रेम की पैमाईश के पैमाने"
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अगर तुम्हें देखना हो,
असल में प्रेम क्या है?.
नायक.! तो तुम नायिका नहीं!
कोई _उपनायिका_ चुनना!
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मेरी जान!
बात जब भी
तुम्हारी आएगी।
मैं तर्पण नहीं;
मोक्ष नहीं_
भटकाव चुनूंगा!
प्रेम चुनूंगा!
मैं हर बार चुनूंगा
'जीना'
___तुम्हारे साथ__
"एक और नया जीवन"।
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