शराफ़त की दुनिया किधर है, नज़र नहीं आती हमको
दिल में मोहब्बत,आँखों में शर्म नज़र नहीं आती हमको
काम का हूँ , तो लोग पुकार लेते हैं कभी-कभी मुझको
कोई सिर्फ़ अच्छा है तो, ज़रूरत नज़र नहीं आती हमको
वो जो एक शख़्स है, सबको अपना-अपना सा लगता है
पर ऐसा भी नहीं ,उसकी असलियत नज़र नहीं आती हमको
सिर्फ़ मोहब्बत कर, उसके मुकम्मल होने की शर्त न रख
चाँद की चाँदनी सिर्फ़ एक पर हो, नज़र नहीं आती हमको
फिर उसने कहा , एक बार और आज़माओ हमको प्यार में
मगर प्यार में, आज़माइश की ज़रूरत नज़र नहीं आती हमको
पीछे पड़ा है, ज़िद पर अड़ा है, मिलने को बेक़रार है हमसे
पर ख़ुद में ऐसी कोई ख़ास बात तो, नज़र नहीं आती हमको-
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मुझ से राब्ता रखने में , आख़िर क्या ही मिलता उसे
मेरे पास प्यास थी और उसको दरिया की तलाश थी-
वो अपनी मर्ज़ी से मिलते हैं, अपनी मर्ज़ी से प्यार करते हैं
एक हम हैं जो कई वर्षों से यही भूल गए, मर्ज़ी क्या होती है-
लोगों के पीछे जाओ तो वो भागते हैं
जबकि आपसे मिलना उनको सपना लगता था एक समय पर
बिलकुल उस तरह से है
जब बंदर के पीछे भागो तो बंदर भागता है
आप भागो तो बंदर आपके पीछे भागता है
जीवन में भी लोग इसी तरह रीऐक्ट करते हैं
आप चाहकर भी बच नहीं सकते
बेहतर है संतुलन स्थापित करना, न ज़्यादा पीछे जाओ
न ज़्यादा पीछे किसी को लगाओ
मगर इश्क़ के मारे लोग इससे बच नहीं सकते !-
तुम अचानक कहाँ से आ गई हो
तुम मेरे ख़्यालों में क्यों आ गई हो
चंद बातें तो करना चाहता था तुमसे
मगर कहानियाँ लेकर क्यों आ गई हो
बुलाना चाहता था मुलाक़ात के लिए,पर
तुम तो ज़िंदगी बनकर क्यों आ गई हो
आसमान पर कहो तो तुम्हारा नाम लिखूँ
तुम उँगलियों पर स्याही बनकर आ गई हो
मिलना है तुमसे, मगर मिल नहीं पा रहा
अरे, क्यों तुम आफ़त बनकर आ गई हो
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स्वप्न मर कर भी ज़िंदा हैं
हम ज़िंदा हैं पर मुर्दा हैं
कोई कैसे जीए यहाँ
हर पहलू में दो पहलू हैं-
लगातार एक गुनाह किए जा रहा हूं मैं
दरकिनार होते हुए भी दर पर रहा हूं मैं-
तुम्हें देखने को जी चाहता है
कुछ सुनाने को जी चाहता है
पास तो हो कहीं तुम मेरे यहीं
बस छूने को तुम्हें जी चाहता है-
जैसे ही थोड़ा समय मिलता है मुझको, इश्क़ इश्क़ हो जाता हूं
इश्क़ करता हूं, इश्क़ पढ़ता हूं, इश्क़ सुनता हूं, इश्क़ बोलता हूं-
मुझ से दूर होते वक्त तुम्हारी आंखों में जो मोती उतर आए
वो मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कमाई और कामयाबी है-