Shyam Sundar Pathak   (Dr. Shyam 'Anant')
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Assistant Commissioner GST Noida
Joined 5 December 2020


Assistant Commissioner GST Noida
Joined 5 December 2020
30 NOV 2024 AT 9:27

"प्रेम योग है, प्रयोग नहीं ,
प्रेम में वियोग जरूर है, पर उपयोग नहीं,
प्रेम अपनी शर्तों पर नहीं,
बिना शर्त होता है,
इसलिए प्रेम दुधारी तलवार की तरह है,
बिना कुछ आशा किए प्रेम है,
तो प्रेम है,
और यही प्रेम उपासना तक जाता है,
भक्ति तक जाता है,
मायने ये नहीं रखता कि प्रेम किस से किया,
मायने सिर्फ प्रेम रखता है,
और जहां प्रेम है, वहीं ईश्वर है,
फिर चाहे वो पत्थर हो, मनुष्य हो या स्वयं ईश्वर"
- डॉ. श्याम 'अनंत'

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17 NOV 2024 AT 8:27

आओ स्वागत है तुम्हारा, मेरे मन आंगन में,
इस तरह कोई आ बसेगा, कभी सोचा न था,
तुम्हारे स्वरों की मधुर रुनझुन,
गूंजती रहती हैं कोयल की स्वर लहरियों सी,
ज्ञान, विनम्रता और व्यवहार,
इनमें से किसकी तारीफ करूं,
समझ नहीं आता,
बस इतना समझ आता है, कि दिव्य हो तुम,
और तुम्हारी हर चीज दिव्य है,
खोलो अपने मन के बंद दरवाजे,
आने दो मेरे भाव समर्पण की मधुर सुगंधित बयार,
जानता हूं, दुनिया के कड़वे अनुभवों ने बना दिया है तुम्हें शुष्क,
देखो झांककर अंदर अपने,
तो एक कोमल, सुंदर और भावपूर्ण हृदय मिलेगा,
जिसमें संसार की शुष्कता नहीं,
निर्मल, निश्छल प्रेम का सागर हिलोरे लेता मिलेगा,
और उसी सागर की एक छोटी सी,
उच्छृंखल, उफनती, मचलती नदी सा मैं,
मिलूंगा आतुर, अपने सागर से मिलने को,
बस एक बार फैला दो अपना आंचल,
और कह दो,
हाँ, आओ स्वागत है तुम्हारा "। - डॉ. श्याम ' अनंत '

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15 NOV 2024 AT 10:04

श्यामसूत्रम्...
"कस्यापि उपकारस्य स्वीकारोक्ति: कृतज्ञता न, अपितु तस्य उपकारस्य प्रतिरूपे अन्यं प्रत्युपकरणम् खलु कृतज्ञता भवति.."
अर्थ -
किसी के उपकार को स्वीकार करना कृतज्ञता नहीं, बल्कि उस उपकार के बदले किसी अन्य का उपकार करना असल कृतज्ञता है ।
- डॉ. श्याम सुंदर पाठक

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30 OCT 2024 AT 9:58

''क्या मिटा ली कालिमा मनों के अंदर की ?
क्या आनंद के प्रकाश से भर लिया अन्तर्मन ?
क्या दूसरों को आगे बढ़ते देखकर,
नहीं फूटते आपके मन में खुशियों के पटाखे ?
क्या वाणी की मिठास से नहीं भर पाते आप,
किसी के जीवन में मिठास ?
क्या किसी गैर के जीवन में जलाया आपने
ज्ञान का प्रकाश ?
क्या स्त्री रूपी लक्ष्मी को भोग्या समझने का विचार अभी भी मन में है ?
तो फिर कोई अर्थ नहीं बाहरी दीपोत्सव का,
असली दीपोत्सव आएगा अपने और फिर अन्यों के जीवन में,
खुशियों, ज्ञान और उन्नति के दीप जलाने से,
तो आइए इस दीपावली मनाएं असली दीपावली''
- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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28 OCT 2024 AT 8:31

''कितना खूबसूरत अहसास है प्रेम,
किसी के कंधे पर सिर रखकर,
भूल जाना हर ग़म,
हाथों में हाथ थाम अहसास- दुनिया जीत लेने का,
पता नहीं इस खूबसूरत अहसास से
क्यों मरहूम है दुनिया,
हर तरफ सिर्फ़ चालाकियाँ, फरेब, धोखा,
जाने क्या पाने की अन्तहीन चाहतें,
प्यार की भूखी इस दुनिया में बस प्यार ही नहीं,
तभी तो मशीनों, वस्तुओं, जानवरों में तलाश रही है प्यार और सुकून,
बस इंसान को छोड़कर...''
- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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26 OCT 2024 AT 8:57

"तुम कहते हो,
प्रेम न अभिव्यक्त हो सकता है, न किया जा सकता है,
ये तो अहसास है जो स्वतः होता है,
प्रेम किया नहीं जाता, होता है,
कहाँ से लाते हो इतने गूढ़- ज्ञान की बातें,
प्रेम को शब्दों, परिभाषाओं, सिद्धान्तों के
मकड़जाल में फंसा कर क्यों करते हो,
बोझिल, उलझाऊ और परेशान,
प्रेम क्या है, क्या नहीं है,
मैं ये सब कुछ नहीं जानता,
मैं सिर्फ तुम्हें जानता हूँ और
इतना कि हर पल तुम मेरे अहसास में हो,
सही- गलत, पाप- पुण्य, नैतिक-अनैतिक
की समस्त सीमाओं से परे...
जहाँ सिर्फ़ तुम हो, मैं भी नहीं ''
- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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13 OCT 2024 AT 8:58

है स्वीकार मुझे ये अगम नेह,
संसृति के दिव्य स्पन्दन से ,
बांध लिया तुमने बिन डोर मुझे,
मन - प्राण तेरे, नहीं रही अब ये मेरी देह,
तुम श्वासों में बन सुगन्ध,
अपनी होने की देती अनुभूति,
तुम कहो कि क्यों न करूं स्वीकार,
मैं तुमको क्या दूंगा, नहीं इस प्रेम की प्रतिभूति,
धन्य- धन्य मैं धन्य हुआ,
पाकर तेरा ये पवित्र प्रेम,
अब जीवन हो या मरण प्रिये,
तुम हो तो अब हर पल है मेरी कुशल क्षेम...
- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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12 OCT 2024 AT 9:06

"सुनो,
तेरी बातों की खुशबू , बेहिसाब है, लाजवाब है,
झरनों के झर - झर पानी सी तेरी हंसी,
जिसकी गूंज तेरे पीछे भी गूंजती रहती है कानों में,
तुम भी मुझे करती हो प्यार,
इस बात का अहसास ही बन जाता है जीने का सबब ,
तुमको पाने का ख़्वाब ही, सबसे बड़ा प्रेरणा का केंद्र है,
और तेरे ख़्वाब को धरातल पर उतारने की,
मेरी ज़िद ही मेरी सांसों का सम्बल,
तुम मिले तो जीने का नया अहसास मिल गया,
गुजारिश यही है बस,
ये प्यार यूँ ही बढ़ता रहे,
ये रास्ते यूँ साथ चलते रहे हमारे...

- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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7 JUN 2024 AT 8:28

*''छू , जो लिया तुमने ''*

''हाँ, छू जो लिया तुमने,
बन गया ये उजड़ा चमन भी बहारे- गुलिस्तां,
कि सूने मन में जल उठे खुशियों के चिराग,
कि ये बुझी- बुझी काया भी ,
लगी है दमकने स्पर्श से तेरे,
तुम कोई जादूगर हो या कोई भगवान,
नहीं जानता, बस इतना जानता हूँ,
कि तेरे आने के बाद ही, जान पाया हूँ खुद को,
प्यार से बढ़कर खूबसूरत अहसास नहीं होता कोई,
बशर्ते किरदार तुम सा हो, शख्सियत तुम सी हो,
प्यार का अंदाज़ तुम सा हो,
तो मंज़िल की परवाह नहीं फिर,
बस हाथ में हाथ तेरा हो ''
- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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7 JUN 2024 AT 8:23

त्रिवेणी- '' प्रीत की रीत''

''आसान नहीं निभाना प्रीत की रीत,

ये मांगती है त्याग, समर्पण और बलिदान खुशियों का,

पर तेरे लिए ये सब हो जाता है अपने आप ''

- डॉ. श्याम 'अनन्त'

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