सांसों से ही हैं, ये शिकवे शिकायतें ये रंजिश ये ग़म;
वरना कफ़न से गिला कैसा, मुर्दे से शिकायत कैसी...-
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चलो कुछ पल गुजारें साथ, यूंही खामोशी से;
कहने सुनने से, बात अधूरी रह जाती है-
खिलौनों की चाहत से, कामयाब होने के अरमान के बीच,
एक 'बचपन' था, जो कहीं खो गया हमसे...-
ख़ामोश गुज़र गई ज़िन्दगी अपनी, बस तुम्हारे इंतजार में;
ये अश्क गर आंखों से टपकते, तो फिर तमाशा होता...!!-
है दरख्तों के मुक़द्दर सा, मुक़द्दर अपना;
अपने ही हत्थे हुए, अपनों को काटने के लिए ...।।-
पार लाकर डूबा दे, हम वो किनारे नही हैं
किसी को छल ले, हम ऐसे सहारे नही है
मौत को मुट्ठी में लेकर चलते हैं हम जैसे लोग,
सर कटा दिया लेकिन, हम कभी हारे नही हैं...।।-
उठ जाते हैं कुछ लोग, रात से थक कर भी;
हर सुबह की नसीब में, नींद नही होती . . . !!-
एक वक्त के बाद सब यहीं धरा रह जाता है...
शिकवे गिले, अपनो से जो दर्द मिले
गुस्सा और प्यार भी, दुश्मन भी यार भी
हूरों सा हुस्न भी, आग सी वो जवानी भी
अनकहे किस्से भी, मशहूर हुई कहानी भी
वो किरदार बस बेजान, धरती पर पड़ा रह जाता है,
एक वक्त के बाद, सब यही धरा रह जाता है...!!-
थक गई होगी ये धड़कन, मुझमें दौड़ते दौड़ते,
काश की अब ये रुक कर, मुझे आराम दे दे...!!-
इश्क़ इतना भी ना हो, की फिदा हो जाएं;
करीबी ऐसी ना हो, की हम जुदा हो जाएं;
गर हो इंसान, तो कुछ गलतियां भी तो हों;
कोई इतना भी सही ना हो, की बस खुदा हो जाए ।-