जब अनजान ही बनाना था हमें, तो अजनबी को हमसफर क्यों बनाया तुमनें
बरसों से लिखे जा रहे इस कल की शुरुवात भी तो तुमने ही करवायी थी, तो आज यह कलम क्यों बदलवायी तुमने ऐतराज़ इतना था अगर तुम्हें, तो अजनबी को अजनबी ही क्यों ना रखा तुमनें
थोड़ा फ़ुरसत में कभी मिलना हमसे क्योंकि, क्या है न प्रिय किस्मत, शिकायतें बहुत है मुझे तुमसे..