तुम रख देना... अपने पैर ...
मेरी हथेलियां पर ..
तुम्हारे पैर ....के
स्पर्श को मैं हमेशा...
अपने माथे का ....
......तिलक बनाकर लगाऊंगा
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कुछ लड़कियां होती हैं .....
बिल्कुल मां जैसी ,
वह रखती हैं ख्याल लड़कों का...
अपने भाई जैसा ,
अपने प्रेमी का ...अपने पति जैसा
अपने दोस्तों का ....अपनी बहनों जैसा ,
वह निभाती हर दायित्व....
अपने घर और बाहरी व्यक्तित्व का ,
वह रखती है ख्याल सबका
पर नहीं रख पाती तो सिर्फ ........ Apna...
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तेरे जाने के बाद
यह शहर वीरान , वीरान सा क्यों लगता है ,
काम है बहुत आसान
पर आसान , आसान क्यों नहीं लगता है ,
बैठा रहता हु दिन भर घर में
पर आराम , आराम सा क्यों नहीं लगता है ।
मेरे घर से , तेरे घर की दहलीज , है चार कदम की दूरी पर
पर वहां जाना अब क्यों आसान सा नहीं लगता है ,
मेरे घर में भी रहते हैं मेरे सब लोग ,
पर तेरे एक ना होने से हर कोई अनजान सा क्यों लगता है ।।
मारा , मारा फिरता हूं तेरी ही याद में
इन त्योहारों के मौसम में भी ,
यह शहर मुझे कब्रिस्तान सा क्यों लगता है !
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अंत में
इश्क का अंजाम यह हुआ ग़ालिब
तेरे शहर में ही जान देकर
दिल अपना तुड़वा बैठे !
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हम तो बेवजह नजरों में हैं
मेरा वो शख्स
कहीं और दिल लगाए बैठा है
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1
मौसम बारिश का भी नहीं था
और
मेरी आंखे भीग रही थी
2
मैं प्रेम में उपहार स्वरूप नहीं लाऊंगा तुम्हारे लिए
चांद ,सितारे , ताजमहल
मैं तुम्हें दूंगा
झुमके , बाली , बिंदिया ,काजल , लाली , चूड़ी, पाजेब
और अपना कीमती समय
3
तुम्हारे द्वारा छोड़े जाने पर मैंने नहीं काटी
और प्रेमियों की तरह अपनी कलाई
मैंने चुना , रास्ता तुम्हारी स्मृतियों को कागज़ पर लिखना
यह शायद दुनिया की सबसे दर्दनाक मौत है
4
अब तो सजा - सँवरा भी नहीं जाता
आईना भी बोले
क्या थे और क्या हो गए हो तुम
5
ऐ जिंदगी इतना भी मत रुलाया कर
मैं भी किसी के घर का बेटा हूं
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मैंने अपने हृदय के...
एकांत कोने में ,
आज भी तुम्हारी यादों को.....
संभाले रखा हुआ है
ये आज भी......
इसी प्रतीक्षा में है ,
तुम आओ ......और
इनकी पीड़ा को महसूस करो !
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हम सब लोग एक ही प्रजनन
से उत्पन होते हैं
धरती पर आकर सब अलग , अलग
धर्म के हो जातें हैं
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