रावण मुख से राम बुलवाए
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चाँद-चाँदनी की क़ीमत समझो,
प्यार की सच्चाई समझो,
अपनी नीयत साफ़ रखो,
चाँद भी घट जाता है,
हे मनुज अहंकार क्या चीज़ है!
अमावस पर पूरी तरह मिट जाता है,
हे मानव! तू किस वहम में है।
बूँदें गिरकर आसमाँ नहीं धो देतीं,
सूरज के ताप से अर्श नहीं बचता,
मग़र चाँद दूज का ही क्यों न हो,
मनमोहकता आँखों में है भरता,
फ़लक से रिश्ता है सभी का,
जात-पात का रवैया वहाँ नहीं,
ब्राह्मण हो या दुशाद
नभ में कोई सूराख कर सकता नहीं,
रिश्तों की अहमियत तू समझ,
जब व्योम किसी एक का नहीं,
तो ज़मीन कैसे तेरी अपनी हुई!
तूने उगाये खेत खलिहान तो क्या!
तू माँ भाई का खून बहेगा,
अरे आत्म सम्मान की रक्षा कर,
अहंकार तोड़ चिपका तारा बन,
सूरज भी छिप जाता है ग्रहण में कभी,
तू मामूली माटी है,
उस पर बहा लहू नहीं, मातृभूमि का लाल बन।-
दो मिसरे प्यार के लिख दो इस तख्ती पर,
एक में नाम तेरा हो, दूजा मेरे नाम हो।-
मैं तेरी कहानी का हिस्सा और तू हँसी मेरी
सपनों का मतलब तू, मैं कजरारी आँखों का पानी।-
मैं बीज बोता गया,
वो मेरी उपज खराब करता गया,
समझ नहीं आया वो मुझे तराश रहा है,
या इस मूक प्राणी को,
जो डंडे की चोट पर धरा का बढ़ा रहा है,
या फ़िर अड़चनें हैं मेरी एक ख़्वाहिश में,
ज्यों मैं धरती माँ को हरी चुनर से सजाना चाहता हूँ,
त्यों ही प्रलय-सा वातावरण उभर जाता है,
आसमान रूठ कर जैसे धरा को निगलना चाहता है,
मैं भी किसान हूँ, ज़मींदार का बीज हूँ,
यूँ ही जाने न दूँगा अपनी माँ को,
इसकी बंजरता मैं अनवरत निरंतर प्रयास से करूँगा दूर,
इसके आँचल में रंग-बिरंगे सजेंगे फूल,
इसके आँगन में खिलेंगे इसके कूल।-
हे दशभुजा वाली हर दर, वर दे!
हर घर आँगन में ख़ुशियाँ भर दे,
नहीं कामना धन दौलत की,
बस! अपने चरणों की थोड़ी धूल छोड़ दे।
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