सच बोलने की यारा मुझे तो बीमारी है
हाँ! लोगों को लगती ये होशियारी है
के हाल-ए-दिल बिछा दिया बाग़ों में
पर ना समझना ही तिरी समझदारी है
मुआफ़ करना नेक इरादों को मिरे
सरकारी होना ही तिरि अदाक़ारी है
बड़े किस्से हैं तिरी हस्ती के जानाँ!
पर लहज़ा तो लगता कुछ बाज़ारी है
अब सुस्त-रौ साँसों में हलचल नही
तुझसे ही धड़कनों की तेज़ रफ़्तारी है
कभी तो इफ़ाक़ा हो मर्ज़-ए-इश्क़ में
मरहम है तू,इक तिरी ही तलबगारी है
तिरे शेर भी वही मकबूल हुए "श्वेता"
जिनमें ज़िक्र-ए-इश्क़-ए-ख़ुमारी है..-
Stay away all the gifters from my ... read more
Deserving or desiring....🤔
Woman can understand
both the sides of a man
but man can't☝️-
के आज वो इक ख़्वाब ए फ़रामोश हो गए हैं
ये देखकर ज़ख्म भी मिरे ख़ामोश हो गए हैं
ये दिल दर्द-आमेज़ होकर महफ़िल सजा रहा
तो लब सिले हुए गोया गुलपोश हो गए हैं
ठहरते हैं अब कदम, हर शब मय-नोशी पे
जो ज़ोर-ए-'आलम थे, अब बेहोश हो गए हैं
तसव्वुर में थी कभी तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी
अब वो ख़्याल भी ज़रा ख़ता-पोश हो गए हैं
बे-वज्ह कभी नही बहाया जज़्बातों को श्वेता
मगर अब ये आलम ही सियह-पोश हो गए हैं-
अब सारे मोह
ख़त्म हो गए...
इस निर्मोह देह में
अकेलापन घूम रहा है,
शायद अपने लिए
कोई विशेष
कोना ढूँढ़ रहा है
जहाँ उसे मेरी
अंधेर आत्मा
मैला ना कर सके.....-
धुंध जो बन बैठूं मैं, कभी सर्द रातों की,
चमकता हुआ आफ़ताब तुम बन जाना,
लिपट कर रो लूं मैं, तुझसे बिन जताए,
ऐसी अनवरत बरसात तुम बन जाना,
मेरे जिस्म में रूह की भूख़ बन जाना,
बेबस दिल में सब्र की बूँद तुम बन जाना,
छलक आएं गर मखमली जज़्बात मेरे,
काँधे पर सिरहाने की भेंट तुम बन जाना,
तुम मुझमें कहीं मेरी ही छाँव बन जाना,
अनकहे लफ़्ज़ों का शोर तुम बन जाना,
तरा देगी सारे ग़म-ए-जीस्त तेरे "श्वेता"
बस गहराई में डूबी नाव तुम बन जाना-
भरा हुआ दिल था, अब ख़ाली रह जाएगा
जज़्बातों के बा'द अब जाली रह जाएगा
भूल गया वो आख़िर बिखेरकर मुझको भी
अपनी ही नज़र में अब सवाली रह जाएगा-
सबकुछ टूटता है बिखर जाने के लिए
फिर से सिमटता है सँवर जाने के लिए
बादल टूटकर रिमझिम बरखा ले आता है
धरा की तपन तोड़ता है निखर जाने के लिए
इक ख़्वाब टूटा हुआ तारा बन जाता है
रात की शाल बुनता है गुज़र जाने के लिए
बहता समंदर कहां रुक पाता है
पात की ठाह करता है ठहर जाने के लिए
मेरा दिल भी सातवें आसमान से गिर गया है
मरहम तलाशता है सदमें से उबर जाने के लिए
कभी नज़र भर देखना चाहता था जिनको
उन्ही की नज़र में अक्स ढूंढता है उतर जाने के लिए-