shweta srivastav   (अधूरी ख्वाहिश (श्वेता))
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19 JUN 2021 AT 18:19

जिंदगी के सफर में एक ऐसा लम्हा आया है...
जिसकी ना कोई चाहत थी,
ना थी को कोई उम्मीद कभी...

अनजाने चेहरे में है आया जो,
अपना सा लगने लगा है वो...

ना जाने क्या बात है उसमें,
एक अलग सा खींचाव है उसमें...
ढेरों सपने हैं उसकी आंखों में,
एक अलग अपनापन है उसकी बातों में...

जिंदगी के सफर में एक अलग मोड़ आया है मेरे

खुशी के एक बूंद की चाहत ना थी,
वह खुशियों का समंदर बनकर आया है...

अजीब सी बेचैनी है,
कुछ अजीब कशमकश है दिल में...
कुछ पुरानी ठोकरों के
जख्म नहीं भरे हैं दिल के...
जख्म और ठोकरों के बीच मे,
जैसे अटके हैं सारे सपने...

ना जाने क्या लिखा है किस्मत में,
ना जाने क्या मिलेगा किस्मत में...
पर थक चुकी हूं इस तरह से मैं,
कि नहीं है हिम्मत फिर सपने संजोने की...

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17 JUN 2020 AT 23:21

फक्र है मुझे इस बात की,
कायस्थ कुल की मैं बेटी हू...
कुछ अच्छे कर्मों से,
कायस्थ कुल मे जन्मी हू...

कलम हैं हमारी ताकत,
कलम से ही पहचान है,
कलम हमारी शान हैं,
और हम उसपे कुर्बान हैं...

फक्र है मुझे की कायस्थ हू,
कायस्थी होना मेरा सौभाग्य है...

हमारे परम पूज्य श्री चित्रगुप्त महाराज हैं,
उनके हाथों में रहती
मोर कलम और स्याही हैं,
सबका लेखा जोखा रखना,
उनका ये आधिपत्य है,
कलम दवात की पूजा हम सब करते हर एक साल हैं...


फक्र है हमे की हम कायस्थ हैं,
कायस्थ होना हमारा सौभाग्य है...

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5 JUN 2021 AT 20:55

जिंदगी के दौड़ में,
हर इंसान अकेला है...

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4 APR 2021 AT 15:32

थोड़ा तो समझ लो ना पापा,
ये खेल नहीं है प्यार है पापा...

माना कि वो जात अलग है,
पर जात में क्या रखा है पापा...
हम दोनों की ख़ुशी जुड़ी है,
इस बात को स्वीकार लो ना पापा...

इस दुनिया दारी और समाज से डर कर,
कितनी खुशियाँ उजाड़ोगे...
खुद के बच्चे तड़प रहे हैं,
कितना उन्हें तड़पाओगे...

हम दोनों जो अलग हुए तो,
अन्दर से मर जाएगे...
अगर आपके समाज के खातिर,
जो हम दोनों, अलग हो जाते हैं,
तो क्या ये समाज आपका,
हमको खुश रख पायेगा...

किसी ना किसी से तो शादी होगी,
फिर इसमे क्या कमी है पापा...
ये भी तो एक लड़की है,
तो इस से क्यों नफरत है पापा...

बस एक यही विनती है पापा,
इस भेद भाव को भूल जाओ ना पापा...
एक बार मेरी खुशी के ख़ातिर,
इस रिश्ते को अपना लो ना पापा...

थोड़ा समझने की कोशिश करो ना पापा,
ये खेल नहीं है प्यार है पापा...

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26 JAN 2021 AT 23:01

आज खुशी का दिन होता
आज तुम्हारा दिन होता
काश तू हमारे बीच होता

क्यों गया हमे छोड़ के बच्चा
अभी ना तुझको जाना था
तेरे सच्चे प्यार कि कीमत
अभी तो हमको चुकाना था

क्या कुछ कमी रह गयी प्यार में
या लग गयी नजर ज़माने की
दुख होता ये सोच सोच के
क्यों टूटा डोर इस दुलारे से

बहुत सताती है हम सबको
तेरी धुंधली धुंधली जो यादें हैं
आ के जल्दी से लग जा गले तू
फिर किसी भी puppy के रूप में

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8 OCT 2020 AT 20:26

#RepublicFightsBack

Dear ARNAV GOSHWAMI ji

मैं आपके साथ हूँ
हम आपके साथ हूँ
क्यों कि आप सच के साथ हैं

गर्व है इस बात का
कि कोई सच के साथ हैं
कोई आवाज दबा नहीं सकता
क्योंकि आप सच के आवाज हैं

उपर वाले ने आपको
सच्चे कलम से नवाजा हैं
कोई आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकता
क्योंकि आप सच्चे जन की आवाज हैं

कहने को तो आप एक पत्रकार हैं
पर फर्ज निभाते सरहद के जवान के समान है
अपने देश मे रहकर ही
आप लड़ते देश के ग़द्दार से हैं

फर्क़ होता है हमे आप पे
और आपके पूरे टीम पे है
जो सच्चे पत्रकारिता के पहचान है
आप थे आप हो आप रहेगें

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30 SEP 2020 AT 14:08

हो गयी हताश, कुछ पल के लिए
फिर एक सवाल जहन में आया है
कि अखिर क्या गलती थी
उस निर्दोष की
जिसे तुमने शिकार बनाया है

सब्र रख दरिन्दे,
तेरा वक्त भी आयेगा
जो बोया है तुमने आज,
उसका फल मिल जाएगा

उस दिन शायद तुम पछताओगे,
पर वो किसी को नजर ना आयेगा
अपनी माँ के आंचल को
तुमने तो नोच कर खाया है
अपनी बहन की राखी को
तूने राख में मिलाया हैं

थोड़ा तो सोच लिया होता दरिन्दे
ख़ुदा ने तुझे इंसान बनाया था
तूने अपनी इस हैवानियत से
उस ख़ुदा को शर्मसार कर आया है

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23 SEP 2020 AT 12:57

बचपन तेरी याद बहुत आती हैं
इस दिल को बहुत सताती है

वो सच्चे दोस्त, वो सच्ची यारी
थे हम सब एक दूजे के पक्के साथी
हो जाती थी जब भी हम सब मे लड़ाई
अगले पल में ही बनतीं थी पक्की यारी
उस बचपन की थी सारी बातें निराली

वो नानी का घर , वो छुट्टी हमारी
होती थी वही पिकनिक हमारी
उस छुट्टी की यादें हैं इतनी प्यारी
याद कर के ही नम हो जाती आँखे हमारी

ना ही कोई चिंता थी
ना थी कोई फ़िकर
बस एक ही सपना था कि
कब बड़े होंगे हम

और फिर वो सपना पूरा हुआ
अखिर बड़े हो गये हम
इस उलझी हुई दुनिया में
उलझते ही गयें हम

अब याद आता है बचपन तो
सोचता है ये दिल
क्यों देखा ऐसा सपना
क्यों बड़े हो गयें हम

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17 AUG 2020 AT 12:50

आओ एक कविता ख़ुद के लिये लिखते हैं
बहुत लिखा मैंने सबके लिये
आज ख़ुद के लिये कुछ लिखते हैं

जिंदगी ने हर मोड़ पे ही
परखा है मुझको
कभी होंठों पे मुस्कान तो
कभी आँखों में पानी बनकर

इस छोटी सी उम्र ने बहुत बड़े बड़े
सबक सिखाया है मुझको
कभी गैरों को अपना समझ कर तो
कभी झूठों को सच्चा समझ कर

इन सब के बीच एक छोटी सी
दुनिया बसाया है मैंने
जहा दिल में रहते हैं
हर पल मेरे सारे अपने

अपनों के प्यार का
कीमत चुकाना है मुझको
चाहे जितना भी दुख आए या हो तकलीफ
हर पल में मुस्कुराना है मुझको

अपनों के लिये हर फर्ज निभाउगी
चाहे कितना हो बड़ा दुखों का पहाड़
हसते हसते उसको भी
पार कर जाऊँगी

हम तो जिंदगी अपनों के बीच में जीते हैं
आओ एक कविता ख़ुद के लिये भी लिखते हैं

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3 AUG 2020 AT 17:20

राखी जितना छोटा शब्द है,
उतना ही अनमोल है...
इस धागे में ही बंधता भाई बहन का स्नेह है

चाहे हो दूरी मिलों का,
भाई बहन के बीच में...
एक पल में ही साथ ले आता,
ऐसा ये रिश्ते का डोर है...

रखी जितना छोटा शब्द है,
उतना ही ये अनमोल है...

कहने को ये है कच्चा धागा,
पर इसका एहसास सबसे सच्चा है...
भाई बहन के इस प्यार को,
मेहसूस करता छोटा बच्चा भी है...

हो जाती भावुक हर एक लड़की,
जब भी दिखता उनका राखी,
भाई के कलाई पे है...

राखी जितना छोटा शब्द है,
उतना ही ये अनमोल है...

भाई बहन को मिलती सच्ची खुशिया,
इस धागे के त्योहार पे है...

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