SHWETA SINGH   (श्वेता सिंह 💕)
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Joined 25 June 2017


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Joined 25 June 2017
19 DEC 2021 AT 21:12

शीर्षक: अच्छा जाना सुनो

अच्छा जाना सुनो!
जरा पास बैठो, तुम्हें कुछ बताना है
चाहत इस दिल की तुमसे जताना है,
लड़खड़ाती इस ज़ुबान को आज
तुम्हारे साथ प्रीत के गीत गाना है,
शर्माई, झुकी पलकों तले नज़रों को
तुम्हारी निगाहों में आज डूब जाना है।

(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)

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17 DEC 2021 AT 0:07

शीर्षक: ज़रूरी तो नहीं

दिल की हर बात बताना ज़रूरी नहीं,
ज़ज्बातों को लफ़्ज़ों तक लाना ज़रूरी तो नहीं।

आँखों से छलकते हैं बेहिसाब आँसू,
हर एक बूँद की वज़ह बताना ज़रूरी तो नहीं।

कई रातों से सोई नहीं ये आँखें मेरी,
तू वज़ह है जागने की, ये जताना ज़रूरी तो नहीं।

तेरा नाम लेकर धड़कतीं हैं ये धड़कनें,
यह आवाज़ तुझ तक भी जाए, ज़रूरी तो नहीं।

ख़ामोशियाँ भी तेरे साथ को तरसती हैं,
अब हर बार तुम्हें ये समझाना ज़रूरी तो नहीं।

मौज़ूदगी से तुम्हारी फ़र्क पड़ता है,
आदत हो तुम मेरे, ये दिखाना ज़रूरी तो नहीं।

कोना-कोना दिल का खिलता है तुमसे,
तुमसे बेपनाह मोहब्बत है, ये बताना ज़रूरी तो नहीं।

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30 JUN 2021 AT 14:37

Tears of ocean can,
either engulf you in it,
or can give a new path.

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13 JUN 2021 AT 9:00

आज का सुविचार

अहंकार को धारण करके मनुष्य ना ज्ञान अर्जित कर सकता है और ना ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है, क्योंकि अहंकार का आवरण हमारी इंद्रियों को वश में करके हमारे बुद्धि और विवेक को क्षीण कर देता है। अतः मनुष्य में विनम्रता ही असके उद्धार का उत्तम स्रोत है।

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6 JUN 2021 AT 23:41

शीर्षक: ईर्ष्या

मैं वह भाव हूँ, जो सहसा मन में आता हूँ
कभी कुछ खोने का डर, कभी चिढ़ जगाता हूँ
तुम बेखबर रहते हो और मैं घर कर जाता हूँ
इस विश्व में ईर्ष्या, जलन के नाम से जाना जाता हूँ।

मुझपर किसी का कोई अंकुश नहीं
अपनी इच्छा से किसी मन का स्वामी बन जाता हूँ,
जिस मन की होती कच्ची नीव विश्वास की
उसी कमजोर मन पर मैं अपना आधिपत्य जमाता हूँ।

मैं रिश्तों में जन्म लेकर तिनको में बाँटता
राज्य या देश में उत्पन्न होकर द्वंद करवाता हूँ।
कुढ़न का जाल बना मन को उलझाता,
विद्वेष सर्वत्र फैला नकारात्मकता को बढ़ाता हूँ।

पर जहाँ संतुष्टि, संतुलित एवं विश्वास हो
मैं वहाँ कभी अपनी शाख नहीं फैला पाता हूँ
जिस पवित्र मन में आस्था, समर्पण का भाव हो
उस निष्ठावान चित को मैं कभी छू भी ना पाता हूँ।

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5 JUN 2021 AT 23:32

विषय: तितली

तितली सी उड़ जाऊँ मैं
संग लेकर सपने हजार,।
नील गगन में उन्मुक्त विचरू,
मैं अपने पंख पसार।

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4 JUN 2021 AT 23:23

विश्वास

विश्वास जीवन की रणभूमि का वह हथियार है,
जो हमें जीवन में फ़तेह या शिकस्त दे सकता है।

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3 JUN 2021 AT 20:13

शीर्षक: विरह की बेला

मंजूर नहीं मुझको,
ये बेबसी का आलम।
है नागवार मुझको,
तेरी ये बेरुख़ी बालम।

चुभती है दिल को,
विरह की यह बेला।
रहना नहीं अब मुझको,
तुम बिन यूँ अकेला।

रास ना अब श्रृंगार कोई,
नित्य बहते नयनों से नीर।
मन की व्यथा ना समझे कोई,
किसे बताऊँ मन के पीर?

कि, सूना मुझको ये संसार लगे है,
तुम बिन जीवन जीना बेज़ार लगे है।

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3 JUN 2021 AT 11:27

शीर्षक: दिल की कह लेने दो

ज़ज्बात बेशुमार दबे जो मन में,
पास हूँ तो दिल की कह लेने दो।

लौटकर फिर ना यह व़क्त आएगा,
इन लम्हों को खुलकर जी लेने दो।

बयां ना हुआ होंठों से अबतक,
आँखों को वो राज़ बोल देने दो।

समेटकर रखा है चाहत जितना,
साँसों को उसमें पिरो लेने दो।

रह ना जाए कोई ज़र्रा अछूता,
कतरा-कतरा इश्क़ में भिंगो लेने दो।

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2 JUN 2021 AT 12:33

वक्त ने गिराया था,
वक्त ने ही उठाया है,
जीवन का फलसफ़ा,
इस वक्त ने सिखाया है।

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