ज़हन की दीवार से कुछ शब्द खरोच लाते है सलीक़े से उन हर्फ़ों को एक नज़्म में सजाते है चंद आशारो की ख़ुमारी से जी नहीं भरने वाला गुमनाम सुखनवर की पूरी गज़ल तुम्हें सुनाते है
आत्मसम्मान से लबरेज़ आज की नारी हो उम्मीद-ए-ज़िंदगी से भी पक्की यारी हो इंद्रधनुषी रंगो से मुन्नवर तेरी दुनियादारी हो रिश्तों से झाँकती शफ़्फ़ाक वफ़ादारी हो हर ज़ंग से जीत की पुरज़ोर तैयारी हो शक्ति की मिट्टी से गढ़ी आज की नारी हो