Shweta Singh   (Shweta singh)
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Native place: kashi
Joined 18 April 2020


Native place: kashi
Joined 18 April 2020
23 MAR 2021 AT 13:59


कुछ याद हकीकत की तरह साथ चलता है
तेरा एहसास सच मनाने को तैयार ही नही होता है
तुम दूर गए ही नही हमारी ज़िन्दगी से कभी
तभी तो सब कुछ हकीकत सा लगता है
आँशु आते है आँखों मे, दिल भी मरोड़ता है
पर क्या कहूँ की
आज भी सबकुछ नया और ताज़ा लगता है
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा हर वक़्त याद आता है

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6 JAN 2022 AT 14:48

ज़िन्दगी बड़ी छोटी सी गई है
कब कहा कौन बिछड़ जाए नही पता
हो सके तो जी लो हर घड़ी को
क्योंकि अब हर साँस की बड़ी कीमत हो गई है।

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23 NOV 2021 AT 13:06

जिसके हर पन्ने का हिसाब है
जितने दिन गुजरते है
पन्ने उतने ही जुड़ते है
दुनिया में कोई रहे या ना रहे
जब कोई हाथ मे लेकर पलटता है तो
कहानियों का ही भरमार है।

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21 NOV 2021 AT 19:52

एक मंजर था वो तेरे हुस्न का
जब लोग तुम्हे ही देखे जा रहे थे।

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26 SEP 2021 AT 12:38

तो गहराई का पता चलता है
की कई तूफान अंदर ही अंदर
खोकला कर जाते है
तो कई तूफान ऊपर से
सबको बहा ले जाते हैं
ज़िन्दगी में किनारा एक ही बार मिलता है
जब अपनी राख को कोई मटके में भरके
उसे समुंद्र में बहा कर तृप्त करता है।

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26 SEP 2021 AT 12:34

सभी रिस्ते में...
मैं सही हु और तुम गलत
ये साबित करने से अच्छा है
अपने काम को करना चाहिए
रिस्तो का क्या है
वो कभी नही सुधार सकते है
क्योंकि रिस्ते में स ही आधा होता है।

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26 SEP 2021 AT 12:28

मैंने गलती की है तो क्या
मैं बड़ा हु यही एक सोच
पूरी ज़िन्दगी बदल देती है
गलती को करने वाले का भी
गलती को सहने वालो का भी।

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23 SEP 2021 AT 0:05

तुम्हे कितना देख लू
तुम्हे कितना महसूस कर लूं
बचपन के आंगन में
तुम्हारी करोनि को खा जाना
काले चश्मे से देखकर लोगों को डाटना
पान का बीड़ा दबाकर होंठ लाल करना
फिर साड़ी के प्लेट मारकर पड़ोसी के घर घूम लेना
अपनी हर बात को पूरा करवा ही लेना
उस बुढौती में बचपन को जी लेना
और आज उन सब यादो के साथ अलविदा कह देना
ए दादी चलो तुमको अब टाटा bye bye बोल दु।

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1 AUG 2021 AT 13:50

दोस्ती बचपन की नींव
दोस्ती लड़ाई, झगड़े
दोस्ती पढ़ाई, नकल
दोस्ती सफर, हमसफर
एक शब्द में समाया है वो याराना
जहा सबकुछ आजाद है
जहा सब है अपना
दोस्ती वो है जो भूला नही सकते
दोस्ती वो है जो मिटा नही सकते
तू मैं है
मैं तू है
ए दोस्त तू ज़िन्दगी है।

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28 JUN 2021 AT 1:02

कही की सोचती हूँ, कही और पहुँच जाती हूं
घर के कामों में अब अपने,Laptop को भी गिनती हूँ।
कहा से लाऊँ कुछ पल राहत के
जबकि ज़िन्दगी ज़िद किए बैठी है
किसी तरह समझाने की कोशिश में
अब समय के साथ कम ज़िंदगी आगे भागे जा रही हैं
एक समय मे दो काम कोई बड़ी बात नही
क्योंकि काम ज्यादा समय कम हो गया है
कोई कहे न कहे सब अधुरा सा गया है
ज़िद को मनाने में कही कुछ रह न जाए
इसी कोशिश में सब कुछ सहे जा रही है
अब समय के साथ कम ज़िंदगी आगे भागे जा रही हैं।

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