कुछ उदास सा है वो
ना जाने क्यों लबों को सीए हुए है वो
ये कैसी चुप्पी है जो उसने साधी है
कि मेरी जो बाहें सुकून उसे देती थी
वही क्यूं आज उसने ठुकराई है...-
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अजनबी ही तो है वो
कुछ कम जाना पहचाना है वो
ना जाने मेरे लिए किस क़िस्म का ख्याल है वो
ना गुफ़्तगू हुई उससे कुछ खास
फिर मेरे मन को लगी है ये कैसी आस
क्यों है मुझे उसके मेरी जिंदगी में आने का विश्वास
दिल अब उसको और जानना चाहता है
उससे जुड़ी हर चीज़ को अपना बनाना चाहता है
दिल अब उसका गुलाम होना चाहता है
एक मुलाकात क्या हुई
जिस्म और रूह को उसकी आदत सी हुई
ऐसा क्या हुआ जो मुझे उस की तलब सी हुई
हां, एक अजनबी है वो
नहीं, एक अजनबी था वो
पर मेरे लिए अब कौन है वो???-
शोर मचाती इस दुनिया के बीच ,
एक सन्नाटे में बैठे हैं,
मेरा कोई एक हिस्सा मुझसे बिछड़ गया है, बस उसी की याद को लिए हुए बैठे हैं
सूरज और चांद की वही दिशा है
बादलों की भी कल सी ही दशा है
तो क्या अलग है, जो मेरी ये दुर्दशा है
हां मेरा कोई अपना मेरी जिंदगी से जा चुका है, फिर भी उसी की आस लगाए हुए बैठे हैं
वक्त की वही रफ्तार है,
हर चीज़ वैसे ही बरकार है,
तो क्या है अलग , जो मेरी ही दुनिया लगती बेकार है
हां मेरा एक हिस्सा मुझसे टूट कर कहीं बिखर गया है बस उसी की तलाश में बैचेन हुए बैठे हैं
लेकिन ,
मेरा जो खो गया है ,वो चला गया है
पास नही तो क्या हुआ, साथ मुझे अपना देके गया है
हां मेरे दिल का एक हिस्सा मुझसे जुदा हुआ है , पर हम आज भी उसकी यादों को दिल में समेटे हुए बैठे हैं
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उसके अनकहे लफ़्ज़ों को समझा है मैने
हां, उसकी आंखों की पढ़ा है मैने
उसके हर दर्द को समझा है मैने
हां, उसकी रूह को पढ़ा है मैने
उसकी ख़ामोशी को सुना है मैने
हां, उसकी धड़कनों को पढ़ा है मैने
उसकी नाराज़गी को महसूस किया है मैने
हां, उसकी तड़प को पढ़ा है मैने
उसकी इबादत को देखा है मैने
हां, उसकी मोहब्बत को पढ़ा है मैने...
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मेरे दिल को लगी ये कैसी आस?
क्यों है आज भी मुझे तेरे आने का विश्वास?
शायद कहीं किसी मोड़ पर तू मिलेगा,
ये एहसास ही है अपने आप में ख़ास...-
वो कहते थे,
बड़ी लंबी गुफ्तगू करनी है तुमसे
तुम आना एक पूरी जिंदगी लेकर
कौन बताए उन्हें,
कभी कभी पूरी जिंदगी भी छोटी पड़ जाती है
दिल में गहरे राज़ और दर्द हो दफ़न अगर...
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कौन देगा सुकून इन आंखों को
किसको देखूं कि नींद आ जाए
काश कि ऐसा हो,
कि मैं बंद करूं इन आंखों को
और तू मुझसे रूबरू हो जाए...-
तेरी कमी खलती है
हां, आज भी तेरी याद में
मेरी ये रूह फड़फड़ाती है
सदियों से बुने हुए ख्वाब
अभी तक भी उधड़ रहे हैं
हां, आज भी मेरा दिल और दिमाग
आपस में लड़ रहे हैं
बरसों सुनसान पड़े रास्तों में
अभी तक भी सूनापन है
हां, आज भी ठीक ऐसा ही
मेरे दिल में खालीपन है
इन सूनी आंखों में
अभी तक भी अंधेरा है
हां, आज भी हमारी मोहब्बत की राहों में
छाया हुआ घना कोहरा है
हां सचमुच तेरी कमी खलती है
हां, आज भी तेरी याद में
मेरी ये रूह फड़फड़ाती है...
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हमें फिर आज वो अकेला कर गए
बाहें फैलाए हाथों को अंधेखा कर गए
जब दिल ने रोकना चाहा उन्हें,
तो वो वफ़ा का वादा करके बेवफ़ाई कर गए...
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ये किस समा में जी रहें हैं हम
चंद सांसों के लिए तरस रहे हैं हम
आख़िर किस गुस्ताखी की सजा काट रहें हैं हम
आजादी के लिए तड़प रहें हैं हम
दर्द के आलम को सह रहें हैं हम
फिर भी राहत की चाहत कर रहें हैं हम
इस भीड़ में खो चुके हैं हम
फिर भी खुद की तलाश कर रहें हैं हम
तनहा अकेले भटक रहें हैं हम
फिर भी किसी की तलाश कर रहें हैं हम
उदासी के माहौल में गुजर रहें हैं लम्हे हम
फिर भी खुशियों का इंतजार कर रहें हैं हम
दुख को समेटे हुए रो रहें हैं हम
फिर भी ऊपर से मुस्कुरा रहें हैं हम
रास्ते का हमें कुछ पता ही नहीं
फिर भी अपनी मंजिल को खोज रहें हैं हम
दिल तो ना जाने कितनी बार टूटा है
फिर भी टूटे हुए टुकड़ों को आज तक समेत रहें हैं हम
यूं तो अंधेरे की आदत हो ही गई है
फिर भी रोशनी की उम्मीद के रहें हैं हम-