Shweta Bharati   (Bharati)
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Nihilistic
Joined 27 May 2021


Nihilistic
Joined 27 May 2021
24 SEP 2022 AT 23:44

मंगलवार
२८ सितम्बर , २०२१
११ : २० - मध्यरात्रि

आज आसमान बादलों से भरा है। न चाँद दिख रहा , न ही तारे। सब छिपे जान पड़ते है। शायद छुपम- छिपाई का खेल खेल रहे है। और इसी तरह मैं भी छुपम - छिपाई का यह खेल खेले जा रही हूँ। पता नहीं जितुँगी या हारुँगी। डर लग रहा है, कहीं ऐसा न हो कि खेल खत्म हो जाए और मुझे पता ही न चले। फिर क्या मैं हमेशा के लिए किसी कोने में छिपी रह जाऊँगी? नही, मुझे खुद को ढूंढना ही होगा, मगर कैसे?



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4 JAN 2022 AT 22:11

नादान पत्ते

पत्ते गिरते है
सुबह- शाम
बबूल हो या आम
पत्ते गिरते ही रहते है।

मर- मर कर जो जीते है
हर पल जो गिरते है
कदमों तले जो कुचले गए
वो जानते है
कि पत्ते जब गिरा करते है
बहुत शोर करते है।

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28 NOV 2021 AT 19:50

अब आ भी जा

बहुत इंतजार करवाया
अब और नहीं
कि मुझे तुम्हें देखना है
करीब से
जैसे देखता है कोई बच्चा
तपती दुपहरी सूरज को
आँखें मीचें।

मुझे भय नहीं
कि तुम्हारी ख़ूबसूरती की किरणें
मेरे आँखों में चुभेंगी
मैं बस देखना चाहती हूँ
कि वे मेरी परछाई
कितना लंबा बनाएंगी
बोलो, तुम आओगे न ?

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28 AUG 2021 AT 15:17

कविता में सुंदर कौन ?

कवि ने मुझको बतलाया
"दर्द ही जीवन है"
और
शायद
यही सुंदर है।

{ ज़वाब अनुर्शीषक में }

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19 AUG 2021 AT 15:27

खामोशी

खामोशी प्रमाण है कुछ टूटने का
जैसे टूट जाता है आखिरी खिलौना
और खामोश हो जाता है बचपन।

खामोशी प्रमाण है भीषण युद्ध का
जैसे तलवारों के शोर के बाद
खामोश हो जाता है रक्तरंजित रणक्षेत्र।

खामोशी प्रमाण है अंत का
जैसे कलाई पर आडे़-तिरछे निशान
और खामोश हो जाता है जीवन।

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19 AUG 2021 AT 14:19

अंधेरा घनघोर , कांपे हैे मन
रास्ते में पत्थर बहुत है।
चलते-चलते थक चुकी मगर
सफ़र तन्हा , जाना बहुत दूर है।।

गुजरी सारी रातें करवट बदलते
कैसे कहूँ , आंखें मेरी मजबूर है।
आजकल नींद तो आती खुब है
अफ़सोस कि कब्रिस्तान बहुत दूर है।।

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16 AUG 2021 AT 19:30

शमशान की आग

टिमटिमाती तारों से भरी रात
आज कुछ फ़ीकी ज़ान पड़ती है।
कि धरती पे रौशनी का शोर कैसा
अंधियारी आसमां खामोश नज़र आती है।

मुद्दतों बाद हमने जाना
आग चिता की इतनी उजास करती है।
कि कर के अंधेरा किसी के ख्वाबों को
रौशनी ये गजब अट्ठाहस करती है।

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7 AUG 2021 AT 15:59

You told me not to cry
I did not cried after then
Except behind the closed doors.

I said I am not feeling good
You told me not to feel so
I agreed , or do I ?

Now you own my smiles
And my pillows my tears.
You lost nothing except me
But I lost my everything.

The trust I had on you
Is now shattered like glasses of my window
You were that mischief child
Who don't know how much precious it was for me
You just kept playing
And my window glasses kept breaking
One after another.

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5 AUG 2021 AT 4:05

शालिनी

समन्दर किनारे की गर्म रेत लिखुँ।
या तुझे मुसलाधार बारिश लिखुँ।।

लिखुँ कैसे तुझे , ऐ सुकून-ए-जिंदगी।
कैसे बयां करू तुझे , मरहम-ए-चांदनी।।

तपती धूप में ठंडी छांव - सी।
उफनती नदी में नन्ही नाव - सी।।

मचलते बच्चे की मिठाई तू।
चहकती गौरैया की परछाई तू।।

मेरे कलम की स्याही जो।
मेरी चुप्पी की गहराई जो।।

लिख सकुँ तो लिखुँ ऐसी कहानी।
खेले हम साथ , खेल जिंदगानी।।

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3 AUG 2021 AT 13:54

पत्थर की अहिल्या
पूछती सवाल
हरा मान मेरा
हे महाऋषि
उस देव को दी क्या सज़ा
लुटा मेरा सबकुछ
मिला दंड मुझे ही
अब कौन सुने मेरी व्यथा

विवाह कर
मेरी रक्षा का वादा किया
इंद्र ने रुप बदल छला
आपने त्याग कर दगा दिया
अब कौन राम आएगा
जो उद्धार मेरा करे
जो सीता का न हो सका
वो मेरा दुख हरे



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