मंगलवार
२८ सितम्बर , २०२१
११ : २० - मध्यरात्रि
आज आसमान बादलों से भरा है। न चाँद दिख रहा , न ही तारे। सब छिपे जान पड़ते है। शायद छुपम- छिपाई का खेल खेल रहे है। और इसी तरह मैं भी छुपम - छिपाई का यह खेल खेले जा रही हूँ। पता नहीं जितुँगी या हारुँगी। डर लग रहा है, कहीं ऐसा न हो कि खेल खत्म हो जाए और मुझे पता ही न चले। फिर क्या मैं हमेशा के लिए किसी कोने में छिपी रह जाऊँगी? नही, मुझे खुद को ढूंढना ही होगा, मगर कैसे?
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